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• यही सयानो काम !
[१५६] करना ही है। आपको विश्वास न तो किसानों से पूछिये कि, कुँए में से खेतों को पानी देने से क्या कुँआ खाली होता है? नहीं, कुछ देर के लिये भले ही उसमें पानी कम दिखाई दे, किन्तु थोड़ी देर बाद अथवा रातभर के पश्चात् ही उसमें उतना ही पानी फिर दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार दान देने से धन घटता नहीं, वरन् बढ़ता ही है। तथा चतुर व्यक्ति इसीलिये दान देने में हिचकिचाते नहीं हैं। सन्त कबीर का कथन भी है :
जो जल बाड़े नाव में घर में बाड़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥१॥ जिस प्रकार नाव में पानी आ जाने पर उसे दोनों हाथों से उलीचना आवश्यक है, उसी प्रकार घर में सम्पत्ति बढ़ जाने गर दान देना चाहिए।
एक दृष्टांत देता हूँ - हमारे शरीर में अंगुलियों पर नाखून होते हैं। ये बढ़ते रहते हैं। बढ़े हुये नाखून आप और हम काटते हैं? अमर बढ़े हुए नाखूनों को नहीं काटेंगे तो उनके द्वारा शपिर पर कभी खरोंच लग सकती है। बढ़े हुये नाखूनों में मैल इकट्ठा हो जाता है। जिसमें रहे हुए कीटाणु हमारे हाथों के द्वारा छई जाने वाली वस्तुओं में आ सकते हैं तथा स्वास्थ्य को हानि पहुँचा सकते हैं। ऐसा डाक्टरों का अभिमत है। इसलिए बढ़े हुए नाखूनों को काटना आवश्यक होता है।
धन के लिए भी यही बात है। अगर उसका केवल संग्रह ही किया जाय तो प्रथम तो वह चोरों के लिये शकर्षण का कारण बनता है, और उनसे बचा रहा जाय तो आपके बालकों को मार्ग पर ले जा सकता है। धनवानों के पुत्र यह देखकर कि घर में सम्पत्ति ली कमी नहीं है, प्रथम तो ज्ञान-प्राप्ति में ही लापरवाह रहते हैं दूसरे पान, सिगरे, सिनेमा तथा सैर-सपाटों में भी अनाप-शनाप खर्च करते हैं। इतना ही नहीं, शराब और जुए से भी उनका बचना कठिन हो जाता है। यह परिणाम है धन को इकट्ठा करने का। संसार में प्रत्येक अनावश्यक वस्तु का यही हाल होता है। अन्य कस्तुएँ टूट जाती हैं, फूट जाती हैं या खाद्य-वस्तुएँ हों तो सड़ जाती हैं और दुर्गन्ध पैदा करती हैं। ध्यान में रखने की बात है कि धन यद्यपि सड़कर दुर्गन्ध नहीं मिलाता किन्तु वह अगर आवश्यकता से अधिक हो जाता है तो आपके बालकों में जैसा कि मैंने बताया ही है, कुसंस्कारों की सडाँध उत्पन्न कर सकता है।
इन दोषों से बचने के लिए आप लोगों ने जो उदारता दिखाई है वह प्रशंसनीय है। लेकिन एक बात मैं आपको और बताना चाहता हूँ कि आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा करना भी एक तरह से अपराध है। कुछ व्यक्तियों का धन को इकठ्ठा करने का अर्थ अन्य अनेकानेक गरीबों के मुँह की रोटी छीनना है। कुछ व्यक्तियों की तिजोरियाँ व्यर्थ में भरी रहें तथा दूसरी ओर सैकड़ों व्यक्ति भूखे