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यही सयानो काम इसे प्यार करने वाले भी भय से दूर भागते हैं। सब यही सोचते हैं कि इस देह को ले जाकर फूंक दिया जाय। कि नाड़ी की गति में विकार होते ही सगे-सम्बन्धी परेशान होने लगते हैं तथा :
फौरन डॉक्टर वैद्य बुलावे, चाबी इन्जेक्शन लगवाये।
टन-टन बजे सुने धर कान, चले तबकक ही अच्छा जान! जिस प्रकार घड़ी में टिक-टिक की आवाज बन्द होते ही लोग चाबी भरते हैं तथा कान लगाकर उसकी टिक-टिक की आवाज ध्यान से सुनते हैं, उसी प्रकार शरीर-स्थित नाड़ी में फर्क आते ही शोर-गुल मचता है - 'डॉक्टर लाओ, वैद्य को बुलाओ या कि हकीम साहब को दिखलाओ!"
डॉक्टर आते ही इंजेक्शन रूपी चाबी ईते हैं, और बार-बार नब्ज व हार्ट देखते हैं कि शरीर में कितनी गर्मी है या कि हार्ट की नया स्थिति है?
आपको ध्यान ही होगा कि जब डॉकर ऑपरेशन करते हैं, उस समय बड़ी सावधानी से एक डॉक्टर नाड़ी पर हाथ रखता है, दूसरा सांस कैसे चल रही है इसका ध्यान रखता है तथा अन्य डोटर ऑपरेशन करते हैं। कहने का अभिप्राय यही है कि नाड़ी के ठपके का महत्व बहुत ही अधिक होता है और डॉक्टर वैद्य के आते ही आशा बंध जाती है। कि अब यह शरीर-रूपी घड़ी पुन: चालू हो जाएगी। इसके विषय में आगे कहा गया है :..
अंगन असन पान की लगती तब यह बहुत मजे से चलती
होता सब को हर्ष महान् चले तब तल ही अच्छा जान।
जब घड़ी खराब हो जाती है तो घड़ीसाज उसके सब कल पुर्जे अलग-अलग करके उसकी सफाई करता है कचरा, कूड़ा हो तो निकलता है तथा पुजों में तेल देता है। इसी प्रकार इस शरीर रूपी घड़ी में भी अन्न और पानी देने पर यह आनन्द से चलती है। सन्त कबीरदास जी ने भी यही बात कही है :
कबीर काया कूतरी, करत भजन में प्रग।
ताको टुकड़ा डारि के, जप-तप करो अभंग। इस शरीर को कबीर जी ने तो कुतिया की ही उपमा दे दी है। वे कहते हैं कि जिस प्रकार कुतिया को खाने के लिए नहीं डालो तो वह भौंकती रहती है, और रोटी का टुकड़ा डाल दिया जाय की शान्त हो जाती है। इसी प्रकार इस शरीर को अगर खुराक नहीं दी जाय तो यह भी शान्ति से भजन नहीं करने देता। अत: उचित यही है कि इसे थोड़ा खासा देकर उमंग सहित जप-तप करो। थोड़ा अन्न लेने पर ही यह प्राणी को बेफिक्र होकर भजन-भाव करने दे सकता