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यही सयानो काम !
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अगर आपके इन सद्प्रयत्नों से आपके बालक विनयी, संस्कारी और धार्मिक बन जाएँगे तो आपके कुल का गौञ्च तो बढ़ेगा ही, साथ ही समाज की स्थिति सुधरेगी, संघ की स्थिति मजबूत होगी तथा देश की कीर्ति बढ़ेगी। आप जानते हैं कि हमारा भारतवर्ष, संसार के अन्य समस्त देशों के द्वारा आदर की दृष्टि से देखा जाता रहा है। वह क्यों? इसलिए कि इस देश में महान् ऋषि-मुनियों का, धर्म के मर्म को समझने वाले बड़े-बड़े आचार्यों का, धुरंधर विद्वानों का तथा 'कालिदास' जैसे अनेक महाकवियों का जन्म आ है। हमारा जैन-दर्शन आज भी संसार के समस्त देशों द्वारा मान्य है तथा समस्त धर्मों से ऊँचा माना जाता है। हमारे देश के आचारविचार और सादगी की सभी सराहना करते हैं। यह सब कैसे होता है? एक-एक व्यक्ति के सदाचारी बनने से तगा एक-एक व्यक्ति के सुसंस्कारी बनने से।
इसलिये मैं कहता हूँ कि आप अपने एक-एक बचे को धार्मिक और सदाचारी बनाइये, समाज अपने आप उन्नत हो जाएगा। और जब समाज उन्नत होगा तो देश का गौरव स्वयं ही बढ़ेगा। बाक अज्ञानी होते हैं पर कच्चे घड़े के समान होते हैं । इनको जिस साँचे में ढाला जायेगा वैसे ही ढल जायेंगे । इनके भोले हृदयों में जैसे संस्कार आप डालेंगे वैसे ही डल जायेंगे। इसके अलावा बाल्यावस्था में जो संस्कार हृदय में जम जाते है वह सदा बने रहते हैं, मिटते नहीं। इसीलिये बालकों के लिये धार्मिक स्कूल की अनिवार्य जरूरत है, ताकि अभी से इनके संस्कार उत्तम बनें तथा इनकी रुचि धर्म की ओर बढ़ सके।
सर्वश्रेष्ठ दान दान की भावना एक अत्तम भावना है। यही धर्म का मुख्य द्वार है। अपनी संचित सम्पत्ति में से व्यक्ति अगर उसका कुछ अंश दान में दे देवे तो उसे कोई नुकसान नहीं होता। कबीर का कथन है -
चिड़ी चोंच भर को गई, नदी न घटियो नीर ।
देता दौलत ना मटै, कह गए दास कबीर।। नदी में जल सतत प्रवाहित होता रहता है। वह असीम जल बहा लाती है तथा सागर की ओर ले जाती है। उस जल-राशि में से अगर चिड़िया अपनी चोंच से कुछ बूँद जल ले जाय तो जल में कमी नहीं आती। उसी प्रकार अगर अपनी सम्पत्ति में से व्यक्ति थोड़ा-बहुत दान में दे देता है तो सम्पत्ति में भी कोई कमी नहीं होती। दूसरे दान दे का अर्थ पैसा फेंकना ही नहीं है वरन् शुभ कर्मों के बीज बोना है। जितना दिया जाएगा उससे अनेक गुना अधिक उसे दूसरे और अधिक अच्छे रूप में प्राप्त हो जाएगा। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को जितना भी और जैसे भी बन सके दान देना चाहिए तथा इस उत्तम भाव को हृदय में सदैव बनाए रखना चाहिए।
दान कई प्रकार के हैं किन्तु उनमें से सर्वश्रेष्ठ विद्या दान है। जैसे आपने
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