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यही सयानो काम व्यक्ति योगासन करते हैं तथा समाधि लेकर बैठते हैं और इनके अलावा बहुत से व्यक्ति पंचाग्नि में देह को भी झुलसा डालते हैं। किन्तु कवि का कथन है कि भले ही नाना प्रकार के कष्ट उठा लिये जायें, जीव अहिंसा और सम्यज्ञान के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। तो सम्यक्ज्ञान जो कि मुक्ति का मूल है -
ज्ञानान्मुक्तिः प्रजायते।' ज्ञान से ही सभी प्रकार की स्थितियों से छुटकारा मिला करता है।
यह विनय के अभाव में प्राप्त नहीं हो सकता। हृदय में विद्यमान रहने पर आत्मा का क्रमश: उत्थान होता है। एकमात्र विजय-गुण युक्त आत्मा विभिन्न श्रेणियों में से गुजरता हुआ मुक्ति-रूपी मंजिल तक पहुँचता है। अत: आत्मोन्नति के इच्छुक प्राणी को सर्व-प्रथम अपने हृदय में विनय गुण की स्थापना करनी चाहिए। हमारे बालक और विनय गुण
अभी दो-तीन दिन पहले बालक-बालिकाओं का धार्मिक शिक्षण देने के लिए खुशालपुरा में एक धार्मिक स्कूल स्थापित करना, इस विषय का संकेत किया गया था। आज वह संकेत कार्य रूप में परिणत होता हआ दिखाई दे रहा है। अर्थात यहाँ के स्थानीय श्री संघ ने उस ओर प्रयत्न किया है। प्रसन्नता की यही बात है कि स्कूल के लिये समाज के व्यक्तियों ने मायाशक्ति दान देकर अपनी उदारता और रुचि का परिचय दिया है।
बंधुओ, आपको भली-भाँति समझना चाहिम कि धार्मिक शिक्षण के लिए दिया हुआ आपका यह पैसा आपको अनेक गुना लान प्रदान करेगा। क्योंकि इस धन से आपके बालक विनय की महत्तासमझेंगे, अनेक उत्तम संस्कारों को अपनाएँगे तथा अपने जीवन को धर्म-मय बनाएँगे। मैं आपसे पूछता हूँ कि अपने बालकों को और समाज के इन भावी कर्णधारों को जब आप सुसंस्कारी और धर्मात्मा पाएँगे, तब क्या आपको आंतरिक खुशी और संतोष प्राप्त नहीं होगा।? क्या आप अपने आज के दिए हुये धन को अनेक गुना सार्थक नहीं समझेंगे? किसी ने सत्य ही कहा
यत्कर्मकरणेनान्त: संतोषं लभते नरः । वस्तुतसाद धनं मन्ये, न धनं धनमुच्यते॥
जिस कार्य के करने से मनुष्य के अन्त:करण को संतोष होता है, मैं वास्तविक धन उसी को मानता हूँ। लौकिक धन को धन नहीं कहा जाता।
यही बात आपके लिये है। स्कूल खोलने के लिए आज जो कार्य और प्रयल आप कर रहे हैं, इससे जितना आत्मिक संतोष आपको मिलेगा उतना रूपया, पैसे, सोना और चांदी के रूप में धन इकट्ठा करने से नहीं मिलेगा।