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कटुकवचन मत बोलो रे
अगले दिन जब वह मेकेरियस के पास आया उन्होंने पूछा "क्यों भाई ! तुमने कल कब्रिस्तान में जाकर कबरों को गालियाँ ये ?"
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संत ने पूछा
ने कुछ भी नहीं
ही तुझे मुक्ति का
"जी हाँ! मैंने आपकी आज्ञा का पालन किया।" तब "तो किसी कबर ने तेरी गाली के जबाब में कहा ?" किसी कहा भगवन्! संत मुस्कुराए और बोले -- "वत्स! कबरों ने मार्ग बता दिया है। तू संसार में मानापमान से अलिप्त रह, किसी की गालियां और दुर्वचन सुनकर भी प्रत्युत्तर में कटु गचन मत बोल! यही मुक्ति का सच्चा मार्ग है।"
कटु वचन सुनने वाले के हृदय को तीर की तरह वेध देते हैं। शस्त्र का आघात तो समय पाकर ठीक हो जाता है किन्तु वचन का आघात दीर्घकाल तक भी मन को सताता रहता है। इसीलिए कबीर ने कहा है
मधुर वचन है औषधी, कटुकः वचन है तीर । श्रवण द्वार से संचरे, सालें सकल शरीर ॥
कड़वे वचनों से सामाजिक वातावरण अप्रिय बनता है और पारिवारिक वातावरण मी विषैला बन जाता है। वचनों का ही प्रभाव होता है कि बाप बेटे में कलह, पति-पत्नी में अनबन और भाई-भाई में पंवर वैमनस्य पैदा हो जाता है। द्रौपदी के इस कथन ने 'अन्धे के लड़के अन्धे ही होते हैं।' महाभारत का युद्ध खड़ा कर दिया।
क्रोधी व्यक्ति अपने घर में ही अभ्रांति का वातावरण बना लेता है। खाने बैठा और रसोई में से थाली उठाकर फेंक दी, क्योंकि साग में नमक कम हो गया। वाह, इतनी सी बात ? अगर नमक मांग लेता तो उसकी हेठी हो जाती ? और पत्नी को तथा उसके सारे घराने वत गालियां देने से क्या वह ऊँचा उठ गया ? घर में नौकर है, पर बात-बात में उसे बुरा-भला कहने और झिड़कने से क्या मालिक महापुरुष बन गया ? दरवाजे पर भिखारी आया उसे अनेक अपशब्द कहकर तथा आँखें निकालकर भगा दिया तो क्या स्वयं व्यक्ति की आत्मा कुछ ऊँची उठ गई ? नहीं, कटुवचन कहकर कभी कोई महान् नहीं बन सकता है।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि मनुष्य व अपनी जबान पर अंकुश रखना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि मैं क्या कह रहा हूँ और इसका प्रभाव क्या होगा। बोलने बोलने में ही बड़ा भारी अन्तर पड़ जाता है। मान लीजिये, 'किसी की माता आई है । पुत्र मां को देखकर अगर कहे कि मेत्रि माताजी आई हैं।' तो मां को सुनकर कितनी प्रसन्नता होगी, उसका हृदय कितने गौरव का अनुभव करेगा ? किन्तु अगर वही पुत्र कहदे 'कि मेरे बाप की औरत है तो माता का हृदय क्या कहेगा ? उसे कितना दुःख महसूस होगा ? बात वाही है। सत्य भी है, किन्तु अप्रिय तो है । अप्रिय सत्य भी मानव को नहीं बोलना चाहिए। मनुस्मृति में कहा भी है