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________________ • [१४१] कटुकवचन मत बोलो रे काजर की कोठरी में कसो ह् सयानो जाय, एक लीक काजर की नागि है पै लागि है। व्यक्ति कितना भी होशियार क्यों न हो, अगर वह काजल में कोठरी में जाएगा तो थोड़ी बहुत कालोंच उसके वस्त्र या शरीर पर लगे विना नहीं रहेगी। इसी प्रकार संगति का भी कुछ न कुछ असर मनुष्य के मन पर हुए बिना नहीं रहता । अतः मन में कपट रखने वाले तथा कटुक वचनों का उच्चारण करने वाले से सम्पर्क रखना ठीक नहीं। पंडितरत्न श्री अमीऋषि जी महाराज ने एक पद्य में ही तीन बातें कही हैं। प्रथम तो यह है कि मन में कपट प्रखकर मधुर बोलने वाले व्यक्ति से अपने मन का भेद नहीं कहना चाहिये। दूसरे - मन में सरलता रखते हुए कोई व्यक्ति हित की भावना से अगर कठोर वचन कहे? तो क्रोध नहीं करना चाहिये। पर तीसरी शिक्षा उनकी यह है कि जो व्यक्ति मन में कपट रखे और जबान से भी कड़वे वचन बोले उसकी तो संगति ही न करे। क्योंकि संगति का असर हुए बिना नहीं रहता। मधुर वचन है औषधि मधुर वचन बोलने वाले व्यक्ति का मन अत्यन्त कोमल और करुण रस से भरा रहता है। परिणाम यह होता है कि उसकी वाणी, दृष्टि और कार्यों में भी मधुरता रहती है। ऐसा व्यक्ति किसी के मन को दुखाने की इच्छा नहीं करता । उसके हाथ किसी को कष्ट देने लिए नहीं उठते, और उसकी जबान किसी का दिल तोड़ने के लिए नहीं खुलती । मीठे वचन महान शोक से संतप्त प्राणी को भी धैर्य प्रदान करते हैं तथा काफी अंशों तक वह अपने दुख को भूल जाता है। रोगी व्यक्ति के लिये तो मधुर वचन औषधि का काम करते हैं। यह प्राण: देखते हैं कि डॉक्टर वैद्य अगर मधुर भाषी होते हैं तो रोगी के हृदय को बल्ल ढाढस और सन्तोष पहुँचा सकते हैं। मरीज की आधी बीमारी तो डॉक्टर या द्य के मीठे वचनों से ही दूर हो जाती है तथा उसका हृदय स्वस्थ होने की आशा से भर जाता है। इसीलिये बुद्धिमान पुरुष सदा ऐसे 1 वाणी बोलते हैं, जिससे किसी को दुख न पहुँचे, वह तिरस्कार का अनुभव न करे और हीनत्व की भावना से न भर जाय। उनके मन में सदा यही भावना रहती है कि : प्रियवाक्य-प्रदानेन सर्वेष्यन्ति जंतवः । तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ? - प्रिय वचन बोलने से सभी प्राणियों को संतोष होता है तो फिर वैसे
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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