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________________ यादृशी भावना यस्य [१३८] कितनी सुन्दर शिक्षा है? अति साल भाषा में यही बताया है कि मोले प्राणी! तू जिस धन, यौवन और शरीर लेकर गर्व करता है वे सब अस्थिर हैं। एक दिन सभी विलीन हो जाएँगे तथा जिन सम्बन्धियों, हितैषियों को अपना मानकर उनके लिये तू अनेक प्रकार के पगा करता है, वे ही तेरी इस देह को अग्नि में समर्पित कर देंगे। तेरे साथ इनमें से कोई नहीं जाएगा तुझे अकेले ही अपनी महायात्रा पर बढ़ना होगा। यह अटल सत्य है कि पुण्य और पाप के अलावा आत्मा का साथी और कोई नहीं होता। अतः प्रत्येक मुमुक्षु को संसार में रहकर भी अनासक्त भावना रखनी चाहिए। तथा शुभ- क्रियाओं के साथ करना जाहिये, क्योंकि किये हुए कर्मों का फल भावना के अनुसार ही मिलता है। कहा भी है :-- 'भावना भवनाशिनी' है। - चाणक्य नीति धर्म-ध्यान से परिपूर्ण भावना जन्म-मरण का अन्त करने वाली होती
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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