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________________ यादृशी भावना यस्य [१३६] सेठ सेठानी अत्यन्त दुखी हुए। पर भाग्य पर किसका जोर चलता है? धीरे-धीरे सेठजी तो अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ गए, किन्तु सेठानी पुत्री के वियोग में विव्हल बनी रही। उसका दिमाग अर्धविक्षिप्त सा हो गया था । एक ठग ने जब सेठजी घर ती स्थिति और सेठानी की विक्षिप्तता के विषय में जाना तो उस अवसर का लाभ उठाने की योजना बनाई। तथा एक दिन सेठजी की अनुपस्थिति में उनकी हवेली पर आ धमका। अन्दर आकर उसने सेठानी को उनके नाम से संबोधन करते हुए पुकारा । सेठानी कुछ चकित हुई। यह विचार कर कि यह व्यक्ति मेरा नाम कैसे जानता है ? फिर भी उसने स्नेह-पूर्वक कहा - "आओ माई, बैठो ! तुम कौन हो ?" ठग बोला "मैं सन्देशवाहक हूँ । एकस्थान से दूसरे स्थान पर समाचार ले जाता हूँ।" यह सुनकर सेठानी बड़ी उत्सुकता पूर्वक बोली - "तुम समाचार पहुँचाने वाले हो तो मेरी लाली बाई का कोई समाचार ले आते।" ठग बोला "माता जी! वही तो लेकर आया हूँ आपकी लाली कई बड़े आनन्दपूर्वक हैं।" खुशी के मारे सेठानी रो पड़ी और विव्हलतापूर्वक बोली "मेरी बेटी ने और क्या क्या समाचार भेजे हैं? मुझे सब 1 कहो।" ठग ने अब उपयुक्त अवसर देखा और कह दिया - "लाली बाई आपको बहुत ही याद करती है। वाले आने नहीं देते। इसलिये उसने समाचार भेजा है हो तो मेरे गहने भेज देना।" -- - आना चाहती है, पर वहाँ कि कोई आने-जाने वाला सेठानी मोह में पागल सी तो हो उही थी। बोली - "अब मैं किसे ढूंढने जाऊँ ? भाई ! तुम समाचार लाये तो गहने भी उसको तुम्हीं पहुँचा देना!" 'नेकी और बूझ बूझ ?' ठग को और चाहिये भी क्या था ? सेठानी से गहने लिये और रफूचक्कर हो गया। इधर जब सेठ जी घर आये तो सेठानी जी ने तुरन्त ही बड़ी प्रसन्नता पूर्वक कहा "आज तो लाली बाई के समाचार आए थे।" सेठजी हैरान हो गए। पूछा - " वह तो मर चुकी है, अब उसके समाचार कहाँ आएँगे?" सेठानी 'नहीं, नहीं! वह बड़े आनन्द में है। उसने अपने गहने मँगवाए थे।" अब सेठजी के कान खड़े हुए। बोले " गहान दे दिये क्या तुमने ?' " वाह ! लड़की ने गहने मँगाये थे तो देती नहीं क्या? समाचार लाने वाले के साथ ही मेज दिये। " "बहुत अच्छा किया ! सेठजी ने मस्तक पीटते हुए कहा। और पूछा "यह तो बताओ कि वह किधर गया और कितनी देर पहले गया ?"
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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