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________________ • [१३५] आनन्द प्रवचन : भाग १ नहीं गया, इसलिए उसने नहीं खाया। त्यगा करने की इच्छा से उसने खाना नहीं छोड़ा। अत: वह तप नहीं कहला सकता। तप किसे कहते हैं ? इच्छा निधिस्तपः - तत्वार्थसूत्र इच्छा का त्याग करना ही तपस्या है! व्यक्ति के शरीर में किसी प्रकार की बीमारी नहीं है, घर में किसी वस्तु का अभाव नहीं है, केश का कोई कारण नहीं है। ऐसी स्थिति में इच्छा पूर्वक उपवास करना तप है। वह तप नहीं है के जिस दिन खाने के लिए नहीं मिला, रोजा रख लिया। हमारी माताएँ और बहिनें आए देन झगड़ पड़ती हैं, कभी अपनी सास से, कभी बहू से और कभी जिठानी या देवरानी से। फिर क्या होता है? पूरे दिन का, या कभी-कभी तो दो-दो, तीन-तीन दिन का भी अनाहार। पर क्या वह तेले की तपस्या में आ सकता है? क्रोध से भूखा रहना या बीमारी से भूखा रहना तप नहीं है, त्याग भी नहीं है। इच्छापूर्वक भोजन का त्याग करके उस समय को चिंतन-मनन में बिताना तथा धर्माचरण करना ही सची तपस्या कहला सकती है। तथा त्याग की श्रेणी में उसे लिया जा सकता है। ऐसे त्याग से ही आत्मा विशुद्ध और निष्कलंक बन सकती है। जहा भी है :"त्याग एव हि सर्वेषां मोक्षसाधनमुत्तमम्" —माल्लवीयश्रुति समस्त प्राणियों के मुक्ति का उत्तम साधन प्राप्त-भोगों का त्याग कर देना ही है। पृथिव्यां प्रवरं हि दानम् त्याग के समान ही दान की भी महत्ता है। सच्चा दान भी वही कहलाता है जो इच्छा से दिया जाता है। समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिये दिया जाने वाला पैसा, किसी अन्य को नीचा दिखाने के लिए दिया जाने वाला धन या व्यापार के सिलसिले में दी जाने वाली रिश्वत वन नहीं कहला सकती। इसी प्रकार अगर धन को चोर ले जाय या माल के रूप में अन्य किसी प्रकार से नष्ट हो जाय, उसे आप दान खाते में लिख दें तो वह भी दाम नहीं कहलायेगा। सेठ जी का खाता एक सेट थे। उनके परिवार में देवल उनकी पत्नी और लड़की थी। लड़की का नाम लाली बाई था। एक मात्र संतान होने के कारण उन्हें पुत्री से अत्यन्त प्रेम था। किन्तु दुर्भाग्यवश लाली बाई इस वर्ष भी होते न होते ही इस लोक से चली गई।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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