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आनन्द प्रवचन : भाग १
तो मेरे कहने का आशय है कि कान में अगर माल होता है तभी भाव आने पर लाभ उठाया जा सकता है। अगर वह आपके पास नहीं रहा तो फिर भाद आया भी तो किस काम का? सोने का भाव बढ़ा, पर अगर सोना है ही नहीं तो सोने का भाव आया हुआ किस काम का? जिस वस्तु का भाव आता है, वह वस्तु आपके पास हो तभी तो भाव से लाभ उठाया जा सकता है।
दान, शील और तप का भावना सोहेत आराधन करने से तीर्थकर नाम-कर्म का उपार्जन होता है। तीर्थंकर नाम-कर्म का उपार्जन करने में बीस बातें कारण होती हैं। वे सभी बाते 'ज्ञाताधर्म कथासूत्र' के मल्लिनाथ भगवान विषयक अध्ययन में बताई गई हैं। उन बीस कारणों में दाग, शील और तप भी आते हैं। यही वह अमूल्य माल है जो भाव के आते ही नफा देता है। दोनों ही एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि माल हो और साव न हो, या भाव हो और माल न हो तो किसी भी एक से कुछ लाभ उठाया नहीं जा सकता। भावना की शक्ति
भावना की शक्ति बड़ी जबर्दस्त होती है। आप दान देंगे, शील पालेंगे तथा तप भी करेंगे, किन्तु हृदय में भावना नहीं होगी तो ये सब कार्य ऊपरी और दिखावे के बन जायेंगे। तथा इन कार्यों में कोई ताकत नहीं रहेगी।
आप जानते ही हैं कि माता अपने । बालक को दूध पिलाती है, उस दूध में जितनी शक्ति होती है, उतनी ऊपरी उन में नहीं होती। ऊपर के दूध और माता के दूध में बड़ा अन्तर होता है। कह क्यों? इसलिए, कि माता का दूध भावनापूर्वक पिलाया जाता है, उसके हृदय में अपने बालक के लिए असीम प्यार होता है, वात्सल्य की भावना होती है इसीलिए दूध बच्चे के लिए अमृत बन जाता
दूसरा दृष्टान्त आप पानी का ले सकते हैं। वर्षा के पानी में जो ताकत है वह कुंए और तालाब के पानी में नहीं। वर्षा का पानी खेतों में गिर जाय तो किसान भाई कहते हैं कि फिर महीने भर पानी की आवश्यकता नहीं रहती, अगर न भी बरसै तो। क्योंकि वर्षा का पानी महीने भर तक टिक जाता है। उसमें बहुत सरसाई रहती है। कुंए का पाी बहुत चले तो सात दिन तक चल सकता है। तत्पश्चात् तो पानी देना ही फरता है, ऐसा मैं सुनता हूँ। पानी तो सभी हैं। कुएँ का भी, तालाब का भी ऑर वर्षा का भी पानी, पानी ही होता है। पर उनमें अन्तर कितना है? " ऐसा ही अन्तर भावनापूर्वक दान, शील और तप का आराधन करने में, तथा इन्हीं क्रियाओं को भावना रहित केवल देखावे के तौर पर करने में है। मुस्लिम मजहब में भी कहा है -