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________________ मंगलमय धर्म-दीप [२] इसका कारण मानव की धर्म सम्बन्धी अनभिज्ञता ही है। वे नहीं जानते कि धर्म का सथा स्वरूप क्या है? केल बाह्य क्रिया-काँडों को धर्म समझ लेना तथा उनके कारण विभिन्न धर्मावलम्बियों को आपस में झगड़ते देखकर धर्म के नाम का ही त्याग कर देना उनकी बचे भारी भूल है। हमारी नई पीढ़ी के युवकों का यही हाल है। वे स्वयं तो धर्म को समझने तथा उसके सच्चे स्वरूप को जानने का प्रयत्न नहीं करते केवल दूर से ही धर्म के नाम पर होने वाले मतभेदों और " कलहों को देखते हैं तथा 'धर्म' नाम व्ला त्याग करने में अपनी बुद्धिमानी मानते हैं। ऐसे नादान प्राणियों को ही मुझे धर्म का सन्न स्वरूप संक्षेप में बताना है। धर्म का सच्चा स्वरूप क्या है? जैन-शास्त्र धर्म का जो स्वरूप प्रीपादिक करते हैं वह इतना सरल, उदार, सार्व और सुन्दर है कि प्रत्येक मानव जी सहज भाव से ग्रहण कर सकता है। धर्म का वह स्वरूप प्रत्येक देश, प्रत्येक जाति, प्रत्येक समाज और प्रत्येक मानव के लिए समान रूप से उपादेय है। दशवैकालिक सूत्र के प्रारम्भ में ही कहा गया धम्मो मंगलमुक्किळं, अहिंसा जमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे भया मणो। जो उत्कृष्ट मंगलमय है वही धर्म है। प्रश्न उठता है कि प्राणी के लिये मंगलमय क्या हो सकता है? मंगलमय का अर्थ है - जो आत्मा की बुराईयों और पापों को नष्ट करे तथा सुख एवं शॉक्ति प्रदान करे। धर्म यही करता है, और इसलिए वह मंगलमय है। दूसरे शब्दों में जो प्राणी मात्र के लिए है, उसी का नाम धर्म है। आगे कहा जा सकता है कि ऐसे कौन से विधि-विधान हैं, जिनके द्वारा सबका 'मंगल' हो सकता है? शास्त्र में इस का उत्तर है - अहिंसा, संयम और तप की आराधना करने से मानव का मंगल तिा है तथा उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। इतना ही नहीं, ऐसे धर्म को धारण करनेवाले को देवता भी नमस्कार करते हैं। अहिंसा परमो धर्म: महाभारत में कहा गया है कि अहिंसा ही सर्वोत्तम धर्म है। वैसे भी अहिंसा के महत्व को कौन नहीं समझता और कौन नहीं अनुभव करता कि आज विश्व को अहिंसा रूपी धर्म की कितनी आवश्यकता है? आज संसार भीषण महायुद्धों से तथा आपसी मार-काट से त्रस्त हो रहा है। प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि किसी प्रकार जगत में शांति का वातावरण स्थापित कर जाए। किन्तु वह शांति क्या हिंसा से मिल सकती है? नहीं, अहिंसा के द्वारा की संसार में शांति की स्थापना हो सकती है। और इस प्रकार हिंसा की अपेक्षा अहिंसा की शक्ति अधिक शक्तिशाली
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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