SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • [१०९] आनन्द प्रवचन : भाग १ जिन्दगी एक तीर है जाने न पाए पायगाँ। पहले निशाना देख लो बाद में खाँचो काँ॥ जीवन तभी सफल हो सकता है, जब कि इस जन्म-मरण के भयानक चक्र से छूट कर अक्षय सुख और असीम शांति को प्राप्त कर लिया जाय। अगर मानव इस ओर नहीं चला तो जीवन व्यर्थ चला जाएगा। प्रत्येक मुमुक्षु को जीवन के एक-एक पल का सदुपयोग करना चाठिये। कर्मगति की विचित्रता को समझते हुए साहस और समभाव से प्रत्येक स्थिति का सामना करना चाहिए। साथ ही जो भूल हो गई हों उनके लिए शुद्ध भाव से प्रायश्चित्त करके शेष जीवन में दृढ़ संकल्प सहित मुक्ति की साधना में संलग्न ओ जाना चाहिये। तभी मानव-पर्याय का मिलना सार्थक हो सकेगा और अव्याबाध सुख की प्राप्ति का हमारा उद्देश्य पूर्ण होगा।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy