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________________ करमगति टारि नाँहिं टरे [१०८] सोने की हो या लोहे की, फिर भी बेड़ी आप अनुभव कर सकते हैं कि किसी भी प्राणी के पैरों में चाहे लोहे की बेड़ियों बनाकर पहनाई जायें या सोने की उसे एकसी तकलीफ होगी, एकसा ही बन्धन महसूस होगा। पाप और पुण्य भी इसी प्रकार लोहे की और सोने की बेड़ियों के समान हैं और ये दोनों ही मनुष्य को मुक्ति-धाम में जाने से रोकती आप यह सुनकर चक्कर में पड़ जारी कि अभी-अभी तो गुरुदेव अशुभ-कर्मों से बचते हुए शुम-कर्मों के उपार्जन का राम आलाप रहे थे और अब यह फरमाने लगे! कि अशुभ और शुभ दोनों ही बन्धन रूप है। यह सत्य है बन्धुओं, वास्तविकता यही है कि आत्मा को मुक्तावस्था प्राप्त कराने के लिये तो इन दोनों ही बंधनों का त्याग करना होगा। अशुभ से बचने के लिये शुभ आवश्यक है किन्तु मुक्त होने ले लिए शुभ मी त्याज्य है। उदाहरणस्वरूप पैर में लगे हुए एक छोटे से अशुभ-कर्म पी काँटे को शुभ-कर्म रूपी दूसरे तीक्ष्ण कांटे से निकालना पड़ता है किन्तु पैर में लगा हुआ कांटा निकल जाने के पश्चात् उस दूसरे कांटे को भी राहगीर पकड़े नहीं रहता, अविलम्ब फेंक देता है और अपनी राह पर बढ़ जाता है। अथवा : अत्यन्त गहरी और चौड़े पाट की नदी को पार करने के लिये यात्री नाव का सहारा लेता है और उसकी सहायता से अगले किनारे पर पहुँच जाता है। किन्तु उसके पश्चात् क्या वह उस नाव में बैठा ही रहता है? नहीं, किनारा आते ही कूदकर अपने गन्तव्य की ओर चल देना है। इस उदाहरण से भी अशुभ और शुभ के विषय में समझना चाहिए। पाप रूपी नदी को पुण्य रूपी नाव से पार तो कर लिया, किन्तु उस पुण्य रूपी ना को भी पकड़े नहीं रहा जा सकता। अपने घर अर्थात् आत्मा के असली स्थान मुक्ति-महल में पहुँचने के लिये तो नाव को ही छोड़ना भी होगा। श्री भगवती सूत्र में भी कहा भी है : "पुण्य पापक्षयो मोक्षः" पुण्य और पाप दोनों का ही क्षय होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। अर्थात् दोनों का क्षय होना ही मोक्ष है। ___ आशा है आप वास्तविकता को समझ गए होंगे। पर यह समझकर कि पुण्य का उपार्जन भी मुक्ति में बाधक है, शुभ कर्मों के उपार्जन का प्रयत्न नहीं छोड़ेंगे। अन्यथा अशुभ-कर्मों का बोझ आएकी आत्मा से उतरना कठिन ही नहीं, वस् असंभव हो जाएगा। हमें मानव-जन्म 'मिला है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं। इस जन्म को हमें व्यर्थ नहीं खोना है। यह नहीं भूलना है कि जीवन एक तीर के समान है जो छोड़ देने के बाद पुन: वापिस नहीं आता। किसी शायर ने कहा भी है :
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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