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________________ करमगति टारि नाहिं टरे [१६] "यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति ताशी।" ---जिसकी जैसी भावना होती है, उसे वैसी ही। सद्धि प्राप्त होती है। भगवान बुद्ध का कथन था कि मनुष्य जैसी भालना रखेगा वैसा ही बन जाएगा। एकबार उनके पास दो व्यक्ति अए। एक ने कहा - "भगवन्! मेरे इस मित्र की अगले जन्म में क्या गति होगी। यह कुत्ते से कार्य और विचार किया करता है।" दूसरा व्यक्ति बोला - "महात्मन! मेरा यह दोस्त भी तो कम नहीं है। इसकी करतूतें सब बिल्ली जैसी हैं। क्या यह अगले जन्म में दिल्ली नहीं बन जाएगा?" बुद्ध ने शांति से उत्तर दिया -- “भाझ्यो! जैसे तुम्हारे संस्कार होंगे वैसा ही फल मिलेगा। जो किसी को कुत्ता समझता है यह स्वयं कुत्ता बनेगा और जो किसी को बिल्ली समझता है वह स्वयं बिल्ली बनोगा।" अभिप्राय यही है कि भावना से ही कार बंध होता है :Fancy may kill or cure -भावना ही मार सकती है या जिला सकती है। भवन बनाना या कुंआ खोदना? मनुष्य मकान बनाता है। एक-एन ईट करके एक मंजिल. दुसरी मंजिल, तीसरी और चौथी, इस प्रकार जितनी गंजिलें वह बनाता जाता : ऊँचा चढ़ता जाता है। हम दिल्ली से आए हैं, वहाँ तीस-तीस- या चालीस मंजिल के भी मकान बन रहे हैं। इतना उँचा चढ़ना कैसे होगा? परिश्रम और मेहनत के रा। साथ में भावना भी काम करती है। ऊपर चने की भावना होगी तभी व्यक्ति चढेगा। बिना भावना के चढ़ना नही हो सकता। स्वाप चाहें कि भावना के बिना ही नीस मंजिल तक चढ़ जाएँ तो यह संभव नहीं है। इसी प्रकार कुआँ खोदने वाला मजदूर भी कार्य करता है। उसके परिश्र के साथ भी भावना काम करती है। वह जैसे-जैसे खोदता जाता है, नीचे उतरता जाता है। इसी प्रकार जीवात्मा जिस तरह का काम करती है, उसी तरह का उसे फल मिलता है। उत्तम कार्य करने वाले के शुभ-कमों का बंध होता है और उसके कारण शुभ फल की प्राप्ति होती है तथा निम्न कार्य करने वाले के अशुभ कर्मों का बंध होने से उन्हें अशुभ फल भोगन पड़ते हैं। इसीलिए शास्त्रकारों ने स्पष्ट कहा है
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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