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देवीकोट-कुमाऊँ में स्थित शोणितपुर । द्रमिक-पूर्वी घाट पर पल्लवों का देश; जिसके नाम-भ्रंश द्रविड़, तामिल आदि हैं। द्रोणादि-कूर्माचल ( कुमाऊँ ) पर द्रोणाचार्य का तपोवन । द्वारावती-द्वारिका, कुशस्थली । द्वैतवन-( उत्तर प्रदेश में ) 'देवबन्द' तपोवन, जहाँ जुए में हारे पाण्डव वनवासी थे । (किराता०) (बहु)धजक बहुधान्यक-रोहितक; आधु० रोहतक । धन(म)कटक-(मद्रास में ) आन्ध्रभृत्यों, सातकर्णियों ( सातवाहनों) की राजधानी,
धारणिकोट, धान्यवतीपुर। धर्मारण्य-गया से ५ मील की दूरी पर, बौद्धों का प्रसिद्ध तीर्थस्थान, जहाँ आज धर्मेश्वर को अपित एक मन्दिर है । मिर्जापुर के मोहरपुर को भी कुछ विद्वान् “धर्मारण्य' समझते हैं । जहाँ अहल्यापति गौतम द्वारा अभिशप्त इन्द्र ने तप किया था। धवलगिरि-उड़ीसा की 'धौली' पर्वतमाला, जहाँ अशोक के कुछ अभिलेख उपलब्ध हुए हैं। धारा (नगर)-मालवा में राजा भोज की प्राचीन राजधानी 'धार' । नगरकोट-कांगड़ा । (तीर्थ) नगरहार--जलालाबाद के ५ मील पश्चिम की ओर, सक्खर तथा काबुल से संगम पर अवस्थित,. ऐतिहासिक नगर। नन्दिकुण्ड-साभ्रमती ( साबरमती ) का उद्गम स्रोत । नन्दिग्राम-(अवध में ) 'नन्दगाँव', जहाँ भरत ने राम के बिछोह में १४ वर्ष काटे थे। इसका
एक और नाम 'भादरासा' (भ्रातृदर्शन) भी है। नलपुर-ग्वालियर से ४० मील दक्षिण-पश्चिम की ओर काली-सिन्धु पर, राजा नल को
राजधानी, 'नरनाव। नलिनी-ब्रह्मपुत्र नदी । ( रत्ना० पम०) नवद्वीप-( बंगाल में) चैतन्य महाप्रभु की जन्मभूमि 'नदिया', कभी यहाँ विश्वविख्याता 'नवद्वीप' विद्यापीठ था। नवराष्ट्र-बम्बई के भडोच जिले में, नौसारी । नागनदी-अचिरावती, राप्ती । नाट(क)-लाट । (गुजरात) नारायणी-गण्डक नदी। नालन्दा-पटना में, राजगृह के दक्षिण-पश्चिम की ओर अवस्थित, प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय । नासिक्य-पञ्चवटी । ( नासिक) निच्छवी-लिच्छवि ( तिरहुत ), तीरभुक्ति । निर्विन्ध्य (1)-चम्बल की एक धारा, 'नेबुज' । ( मेघदूत ) निवृत्ति-पुण्डदेश का पूर्वीय भाग, जिसकी राजधानी पुण्ड्वर्धन थी; गौड़। (त्रिकाण्ड० ) निषध-राजा नल की राजधानी-मारवाड़ तथा जोधपुर का प्रदेश। २. नागों की 'निषाद
भूमि'। (ब्रह्माण्ड०) नीच-भूपाल में, भीलसा के दक्षिण की ओर की गिरिशृङ्खला, नीचाक्ष । ( मेवदूत, देवो०) नीलगिरि-पुरी ( उड़ीसा ) की गिरिशृङ्खला, जहाँ जगन्नाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है। हरिद्वार की नील धारा पर छाये चण्डी पर्वत को भी 'नीलगिरि कहते हैं। किन्तु इन्द्रनील पर्वत, जहाँ अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की सिद्धि के लिये तप किया था, तो द्वैतवन के निकट ही कहीं होना चाहिए । (किराता०)
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