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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षष्ठ परिशिष्ट न्याय संस्कृत का शब्द 'न्याय' प्रक्रिया, रीति, नियम, योजना, औचित्य, विधि, समता, धार्मिकता, अभियोग, निर्णय, नीति, तर्क आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। प्रस्तुत प्रसंग में 'न्याय' से अभिप्राय उन आमाणकों या लोकोक्तियों का है जिनका प्रयोग वर्ण्य-विषय के स्पष्टीकरण के लिए दृष्टान्त-रूप में किया जाता है। नीचे कुछ ऐसे न्यायों के अर्थ और प्रयोग अकारादि क्रम से प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिनका प्रयोग प्रायः संस्कृत ग्रन्थों में और यदा-कदा हिन्दी रचनाओं में भी दृष्टिगोचर होता है। आशा है, पाठक इनका आशय हृदयंगम कर इनके उचित प्रयोग से स्व-निबन्धों तथा संवादों को रोचक तथा विशद बनाने में समर्थ हो सकेंगे। १. अजातपुन्ननामोत्कीर्तनन्याय-इस न्याय का अर्थ है, पुत्रजन्म से पहले ही उसका नाम घोषित करने की कहावत । बच्चे की उत्पत्ति से पूर्व तो यह जानना भी दुष्कर होता है कि पुत्र होगा वा पुत्री। इसलिए पहले ही उसका नाम बताते फिरना बहुत बड़ी मूर्खता माना जाता है। इसी प्रकार असिद्ध कार्य से सम्बन्धित भावी बातों की घोषणा करना अन्याय्य होता है। यथा-'यद्यपीदानीं यावत् परीक्षा परिणामोऽपि न घोषितस्तथापि रामेणाग्रिमकक्षायाः पुस्तकानि क्रीतानि । अजातपुत्रनामोत्कीर्तनं ह्येतत् ।' २. अन्धगजन्याय-अन्धगजन्याय अर्थात् अंधों और हाथी का दृष्टान्त । कुछ अंधों के मन में हाथी का आकार-प्रकार जानने की इच्छा उत्पन्न हुई। एक ने उसकी सूंड छुई और समझा कि वह सर्पवत् होता है। दूसरे ने उसकी टाँग टटोली और सोचा कि वह स्तम्भ-समान होता है। इसी प्रकार जहाँ वस्तु के आंशिक ज्ञान से उसके पूर्ण स्वरूप का मिथ्या अनुमान किया जाता है, वहाँ यह न्याय व्यवहृत होता है। जैसे तदेतदद्वयं ब्रह्म निर्विकारं कुबुद्धिभिः । जात्यन्धगजदृष्ट्येव कोटिश: परिकल्प्यते ।। (नैष्कर्म्यसिद्धिः २१९३) ३. अन्धचटकन्याय-अन्धचटकन्याय अर्थात् प्रशाचक्षु द्वारा चिड़िया के पकड़े जाने की कहावत । यह न्याय घुणाक्षरन्याय का पर्याय है। अन्धा वैसे तो किसी चिड़िया को नहीं पकड़ सकता, संयोगवश उसके हाथ आ जाए तो बात दूसरी है। इसी प्रकार आकस्मिक घटनाओं के लिए, इस न्याय का प्रयोग किया जाता है। जैसे---'सम्यग जानामि कृष्णचन्द्र, नासौ मेधावी न च परिश्रमी, यत्तु स उच्चपदं प्राप्तवान् तत्तु अन्धचटकन्यायेनैव ।' १. अन्धदर्पणन्याय-इस न्याय का अर्थ है, अन्धे को दर्पण दिखाने की कहावत । दर्पण चक्षुष्मान् के लिए ही उपयोगी है, प्रज्ञाचक्षु के लिए नहीं। किसी के लिए वस्तुविशेष की व्यर्थता सूचित करने के लिए यह न्याय प्रयुक्त किया जाता है । यथा यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् । लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं . करिष्यति ॥ (हितोपदेश ३।११५) १. अन्धपरम्परान्याय-अन्धपरम्परान्याय अर्थात् अन्धे के पीछे अन्धों के चलने की कहावत । इस न्याय का प्रयोग वहाँ किया जाता है जहाँ सामान्य जन अग्रगामी का अनुगमन बिना सोचे-विचारे ही करने लगते हैं और परिणाम-रूप में दुःख उठाते हैं। हिन्दी के 'भेड़िया-धंसान' For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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