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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. [७ ] रामायण के कई प्रसंगों में परिवर्तन कर दिये हैं। इनकी कविता में भाव तथा भाषा का अतुल्य सामजस्य है। भाषा में भावानुकूल परिवर्तन करने में ये विशेष निपुण थे। यों तो सभी रसों की अभिव्यक्ति में ये कुशल थे परन्तु करुणरस की व्यंजना में तो विशेष दक्ष थे। नाटककारों में कालिदास के पश्चात् इन्हीं का नाम लिया जाता हैं। भारवि–'अवन्तिसुन्दरीकथा' के अनुसार ये दाक्षिणात्य थे और पुलकेशी द्वितीय के अनुज विष्णुवर्धन ( शासनकाल ६१५ ई०) के सभाकवि थे। कुछ विद्वान् इन्हें त्रावणकोरवासी बताते हैं । इनका समय ६०० ई० के लगभग है। ___ 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य हो इनकी एकमात्र प्राप्त कृति हैं। महाकाव्य के सभी लक्षण इसमें पूर्णतया विद्यमान है। इसका कथानक, जो महाभारत के वनपर्व पर आधृत है, इस प्रकार है-द्यत में पराजित पाण्डव जब द्वैतवन में रह रहे थे तब उनके गुप्तचर ने दुर्योधन के सुव्यवस्थित शासन की स्तुति की। इस पर द्रौपदी और मीमसेन ने युधिष्ठिर को युद्धार्थ उत्तेजित किया परन्तु धर्मपुत्र ने प्रतिज्ञाभंग अनुचित माना। वेदव्यास की प्रेरणा से अर्जुन शिवजी से पाशुपतास्त्र प्राप्त करने को इन्द्रकील पर्वत पर पहुँचे। उन्की उग्र तपस्या को अप्सराएँ भी भग्न न कर सकी। पीछे अर्जुन ने किरातवेशी शिव को अपनी शक्ति से प्रसन्न कर पाशुपतास्त्र की प्राप्ति की। समग्र संस्कृत-वाङ्मय में किरातार्जुनीय-सा ओजःपूर्ण काव्य अन्य नहीं हैं। १८ सों के इस महाकाव्य में प्रधान रस वीर है, अन्य रस गौण। अर्थगौरव अर्थात् थोड़े शब्दों में विशाल और गंभीर अर्थ को सन्निविष्ट कर देना भारवि की उल्लेख्य विशेषता है जिसके कारण 'भारवेरर्थगौरवम्' उक्ति प्रख्यात हो चुकी है। भारवि का काव्य आपाततः कठिन है परन्तु अर्थव्यक्त होने पर वैसे ही आनन्ददायक सिद्ध होता है जैसे नारियल की जटा और खोल तोड़ देने पर उसका फल । इन्हीं गुणों के कारण महाकाव्यों की बृहत्वयी (किरात, माघ और नैषध ) में 'किरातार्जुनीय' का स्थान प्रमुख है। भास-प्रख्यात नाटककार भास के काल के सम्बन्ध में विद्वानों में ऐकमत्य नहीं है। कुछ इन्हें तीसरी शती ईसवी का बताते हैं तो कुछ ई० पू० दूसरी शती का। इनके तेरह नाटक प्राप्त हुए हैं जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १. प्रतिमा नाटक-इसमें राम-वनवास से रावणवध तक की घटनाओं का उल्लेख है। केकय से लौटते हुरु भरत देवकुल में दशरथ की प्रतिमा देखकर उनकी मृत्यु का अनुमान करते हैं। अतएव नाटक को उक्त नाम दिया गया है। २. अभिषेक नाटक-राम के राज्याभिषेक का वृत्त है। ३. पञ्चरात्र महाभारत से सम्बन्धित एक कल्पित घटना के आधार पर रचा गया है। दर्योधन की शर्त के अनुसार द्रोण ने पाण्डवों को पाँच रातों में ढूँढ़ लिया और दुर्योधन ने उन्हें आधा राज्य दे दिया, यही कथानक-सार है। - ४-८. मध्यमव्यायोग, दूतघटोत्कच, कर्णभार, दूतवाक्य, ऊरुभंग के कथानक महाभारत के विशिष्ट प्रसंगों से सम्बन्धित हैं। ९. बालचरित—का सम्बन्ध बालकृष्ण की लीलाओं से है। १०. दरिद्रचारुदत्त-इसमें निर्धन परन्तु चरित्रवान् चारुदत्त और गुणग्राहिणी वेश्या वसन्तसेना के प्रणय का चित्रण है। ११. अविमारक में एक प्राचीन आख्यायिका को नाटकीय रूप दिया गया है। १२. प्रतिज्ञायौगन्धरायण-इसमें मन्त्री यौगन्धरायण को नीति से वत्सराज उदयन के कारामुक्त होने तथा अवन्तिकुमारी वासवदत्ता से उनके विवाह का वर्णन हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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