________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
[ ७४० ]
( २ ) हरिणप्लुता
लक्षण - सयुगात् सलघू विषमे गुरुर्युजि नभौ भरकौ हरिणप्लुता ।
अर्थ- हरिणप्लुता छन्द के विषम चरणों में तीन सगण और लघु-गुरु के क्रम से ११-११ अक्षर और सम चरणों में नगण, दो भगण और रगण के क्रम से १२-१२ अक्षर होते हैं ।
( ११, १२, ११, १२ )
उदाहरण
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उदाहरण-
स स स
लगु
स्फुटफेनचया हरिणप्लुता, ।। ऽ।। ऽ।। ऽ, 1ऽ वलिमनोज्ञतटा तरणेः सुता । कलहंसकुलारवशालिनी,
न भ
भ र
विहरतो हरति स्म हरेर्मनः ॥ ( छन्दोमअरी ) ।।।,ऽ ।।,ऽ 11,51s
(३) अपरवक्त्र
लक्षण - अयुजि ननरला गुरुः समे । तदपरवक्त्रमिदं नजौ जरौ ॥
अर्थ - अपरवक्त्र वृत्त के विषम चरणों में दो नगण, एक रगग और लघु-गुरु के क्रम से -११-११ अक्षर और समचरणों में नगण, दो जगण और रगण के क्रम से १२-१२ अक्षर होते हैं।
( ११, १२, ११, १२ )
न न र
लगु
1
स्फुटसुमधुरवेणुगीतिभि।।।, ।।1,515, 15 स्तमपरवक्त्रमवेत्य माधवम् । गयुवतिगणैः समं स्थिता
न ज ज र
व्रजवनिता धृतचित्तविभ्रमा ॥ ( छन्दोमञ्जरी ) ।।।, ।ऽ ।, । ऽ 1, 5 1 5
(४) पुष्पिताग्रा (नामान्तर औपच्छन्दसिक)
लक्षण - अयुजि नयुगरे फतो यकारो,
युजि च नजौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा ।
अर्थ - पुष्पिताग्रा के विषम चरणों में दो नगण, रगण और यगण के क्रम से १२-१२ अक्षर तथा सम चरणों में नग़ण, दो जगण, रगण और गुरु के क्रम से १३-१३ अक्षर होते हैं ।
( १२, १३, १२, १३ )
For Private And Personal Use Only