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( ख ) जो लेवेगा, नृपति मुझ से, दंड दूँगी करोड़ों, लोटा थाली, सहित तनके, वस्त्र भी बेंच दूँगी । जो माँगेगा, हृदय वह तो, काढ़ दूँगी उसे भी बेटा तेरा गमन मथुरा, मैं न आँखों लखूँगी ॥ ( हरिऔध ) प्रतिचरण १९ वर्णवाले छन्द
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(१) शार्दूलविक्रीडित
लक्षण --- सूर्याश्वर्मसजस्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् । ( १२, ७ पर विराम ) अर्थ - शार्दूलविक्रीडित छन्द के प्रत्येक चरण में मगण, सगण, जगण, सगण, दो तगण और गुरु के क्रम से १९ वर्ण होते हैं । यति सूर्य ( १२ ) और अश्व ( ७ ) पर होती है।
उदाहरण
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( क ) केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः, S S S, 1 IS, 11, 11, SS 1, s s I, s न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः । वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते,
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥ ( भर्तृहरि)
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( ख ) छोटे और बड़े जहाज जल में, देखो वहाँ वे खड़े,
सो भी दृश्य विचित्र किन्तु हमको, वे हानिकारी बड़े ।
ले जाते वरवस्तु देशभर की जाने कहाँ को कहाँ,
लाते केवल ऊपरी चटक की चीजें विदेशी यहाँ || ( कन्हैयालाल पोद्दार )
प्रति चरण २० वर्णवाले छन्द
( १ ) गीतिका
लक्षण -- सजजा भरौ सलगा यदा कथिता तदा खलु गीतिका । ( ५, ७, ८ पर विराम ) अर्थ- गीतिका छन्द के प्रत्येक चरण में सगण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण और लघु-गुरु के क्रम से २० वर्ण होते हैं। पाँचवें, बारहवें और बीसवें अक्षर के बाद यति होती है । उदाहरण-
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(क) करतालचं चलकंकणस्वनमिश्रणेन मनोरमा,
।। ऽ, 1 ऽ ।, । ऽ 1, 511, 515, 115, 15 रमणीय वेणुनिनादरंगिमसंगमेन सुखावहा । बहुलानुराग निवासराससमुद्भवा तव रागिणं, faraौ हरिं खलु वल्लवीजनचारुचामरगीतिका ॥
( ख ) सज जीभ री ! सुलगे मुहीं सुन मो कहा चित लायकै,
नय काल लक्खन जानकी सह राम को नित गायकै । पद मो शरीर हि राम के कल धाम को लय धावद्दू, कर बीन लै अति दीन है नित गीति कान सुनावहू || ( भानु कवि )
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