________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
[ ७२७ ]
और तृतीय चरणों की तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों की अक्षर या मात्रा -संख्या समान होती है । जो छन्द उक्त दोनों वर्गों में नहीं आते, उन्हें विषम कहते हैं ।
नीचे संस्कृत के कुछ प्रसिद्ध छन्दों का परिचय प्रस्तुत किया जाता है । विस्तार के लिए छन्दः शास्त्र, वृत्तरत्नाकर, छन्दोमन्जरी आदि ग्रन्थ द्रष्टव्य हैं ।
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(क) वर्णवृत्त, समछन्द प्रति चरण ८ अक्षरवाले छन्द (१) अनुष्टुप् ( अन्य नाम - श्लोक )
लक्षण - श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं, सर्वत्र लघु पञ्चमम् । द्विचतुः पादयोर्हस्वं, सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥
अर्थ — इसके प्रत्येक पाद का पाँचवाँ वर्ण लघु होता है और छठा गुरु । सम ( द्वितीय तथा चतुर्थ ) चरणों का सातवाँ वर्ण लघु होता है और विषम ( प्रथम तथा तृतीय ) चरणों का सातवाँ वर्ण गुरु । शेष वर्णों के विषय में लघु-गुरु की स्वतंत्रता है ।
उदाहरण
उदाहरण -- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । । ऽ।
Is s
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
Iss
IS I
लक्षण - मो मो गो गो विद्युन्माला ।
अर्थ-मगण, मगण और दो गुरु के क्रम से इसके प्रत्येक चरण में ८ वर्ण होते हैं; अर्थात् सब चरणों के सब वर्ण गुरु ।
म
म
(२) विद्युन्माला
गु गु ( क ) मौनं ध्यानं भूमौ शय्या गुर्वी तस्याः कामाऽवस्था ।
Sss, s s s s s
मेघोत्सङ्गे नृत्तासक्ता; यस्मिन्काले विद्युन्माला ॥
( ख ) गंगा माता तेरी धारा; काटै फंदा मेरा सारा । विद्युन्माला जैसी सोहै; वीचीमाला तेरी मोहै | ( सुधादेवी )
प्रति चरण १० अक्षरवाले छन्द
( १ ) स्वमवती ( अन्य नाम - चम्पकमाला )
लक्षण-भ्मौ सगयुक्तौ रुक्मवतीयम् ।
अर्थ- स्वमवती के प्रत्येक पाद में भगण, मगण, सगण और गुरु के क्रम से १० वर्ण होते हैं ।
For Private And Personal Use Only