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________________ चाय पीयेंगे, हे कृष्ण ! मैं तो नहीं लूंगा, हे कृष्ण !" "राम ने भी तो गुह चाण्डाल के हाथ का भोजन किया था। उससे क्या हुआ? जो होगा देखा जायेगा। इसका विचार आप लोग बाद में करेंगे। काम हो जाने के बाद यदि जीवित रहे तो फिर सोचा करेंगे । अब बभनइ और भगतई छोड़ देनी होगी कोंवर।" "हे कृष्ण, भाग्य में यही बदा था क्या ? इससे दोष लगेगा, हे कृष्ण !" आहिना धीरे से बड़बड़ाया। "संस्कार और धर्म एक नहीं हैं कोंवर । अभी तर्क करने का समय नहीं है। आपने सुना न, धनपुर वगैरह आ रहे हैं।" ___ "हाँ, उनके आने की बात डिमि ने बतायी है। हे कृष्ण, अब स्थिति गम्भीर होती जा रही है । धनपुर विजयी हो आया है, हे कृष्ण । आपकी बातों में पड़कर मैंने हिंसा में हाथ डाला । हिंसा में हाथ देते ही, हे कृष्ण, आ गयीं बन्दूकें । बन्दूक के साथ ही आयी डकैती। उसके बाद हे कृष्ण, ज्यों-ज्यों घटना-स्थली के पास पहुँचता जा रहा हूँ, उतना ही एक-एक कर अपनी प्रिय चीज़ को छोड़ना पड़ रहा है। हे कृष्ण, जाति गयी, सत्य गया-अब बैकुण्ठ कैसे जायेंगे, हे कृष्ण ! भला इन भूतों के साथ गड्ढे में कहाँ गिरने चले आये, हे कृष्ण !" ___ "कृष्ण की चिन्ता करने से ही सब ठीक हो जायेगा। और सब छोड़ दें आहिना कोंवर ! जात-पात, छुआछूत-इन सब का समाप्त हो जाना ही अच्छा है। हाँ, हिंसा का प्रश्न–हिंसा-अहिंसा की समस्या महत्त्वपूर्ण अवश्य है । किन्तु मछली खाने में भी तो एक जीव की हत्या करनी ही पड़ती है। साग-सब्जी आदि बनाने पर भी जीव-हत्या होती ही है। पोखरी उड़ाहते समय भी तो सिंघी मछली बींधती है। गेहुअन साँप अथवा बाघ के आक्रमण के समय आप भला उसके आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना करेंगे या उसे मारेंगे? इस समय भी वैसा ही प्रश्न उपस्थित हो गया है।" आहिना ने अपनी उदासीनता प्रकट करते हुए कहा : "हे कृष्ण, मैं तर्क तो कर नहीं सकता, किन्तु मुझे शुरू से ही बुरा लग रहा है । अब तो धनपुर ही लायक़ आदमी हो गया है, हे कृष्ण !" . गोसाईं ने समझाया : "सब का समय होता है । कभी आपके बिना काम नहीं चलता और कभी धनपुर के बिना भी नहीं चलता।" तभी भिभिराम दिखाई पड़ा। तुरत ही गोसाईंजी ने पूछा "क्या : हुआ भिभिराम ? अकेले क्यों आये ? वे अभी तक बाघ को नहीं मार पाये, क्या ?" ___ "धान अगोरने के लिए बनायी गयी मचान पर बैठे हैं वे। मैं एक दूसरी ख़बर लेकर आया हूँ।" 92 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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