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कभी इसने आहार बना लिया। गाँव में हाहाकार मचा है। धनपुर ने नोक्मा से कहा था, 'चिन्ता न करो, दोनों बन्दूकें दे दो। दोनों बाघों को मारने की ज़िम्मेदारी हमारी ।' शायद उन्होंने एक को तो अभी मार भी डाला । रूपनारायण
बात तो मैं नहीं जानती, किन्तु धनपुर का निशाना तो बचपन से ही सधा हुआ है । वह उड़ती चिड़िया को भी मार गिराता है । आप डरें नहीं गोसाईंजी, वे अब आ ही रहे होंगे ।"
डिमि की बातों से, या शायद उसकी बात करने की भंगिमा से गोसाईंजी बड़े आनन्दित हुए । इन सबके मुख से निःसृत असमीया भाषा कभी-कभी अमृत की तरह मधुर लगती है । ज्योतिप्रसाद आगरवाला की फ़िल्म 'जयमती' में डालिमी के मुख से उच्चरित असमीया भी ऐसी ही थी। एकदम उसी की प्रतिध्वनि जैसी प्रतीत होती है इसकी आवाज़ | अपनी प्यारी बोली दूसरे की जिह्वा से दबकर शहद की मिठास लिये उच्चरित हो तो अपनी ही प्रतिध्वनि-सी प्रतीत होती है। किसी आदमी की बोली सब समय उसकी - सी नहीं होती । इस समय fsfa की बोली में उसकी अन्तर आत्मा प्रकाशित हो रही है । गोसाईजी ने कहा : " तूने बड़ी अच्छी ख़बर दी है डिमि । सिर्फ़ पहरेदारों को पता नहीं चलना चाहिए। तुम यहीं ठहरो, मैं थोड़ी चाय बना लाता हूँ। एक को चाय बनाने का भार सौंपा था । वह अफ़ीम खाकर सब भूल गया । अच्छा, तुम ठहरो ।"
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"चाय तो मैं भी बनाकर दे सकूंगी, गोसाईजी ! मेरे हाथों की बनी चाय नहीं पियेंगे क्या ? आप लोगों में भेद-भाव भी ज्यादा है न !” डिमि की बातों से हँसी फूट रही थी ।
गोसाईं के विवेक को चोट लगी। उन्हे उत्तर देते नहीं बना । डिमि ने कहा :
“धनपुर बहुत अच्छा है । वह एक ही दिन में गारों लोगों के साथ घुल-मिल गया । रूपनारायण पहले हमारे साथ खाने में संकोच कर रहा था । धनपुर ने उसे पहली रात ही समझाया- 'रूपनारायण, खाओगे नहीं तो अपने भी नहीं बन सकोगे | और अपना नहीं बनने पर काम भी नहीं कर सकोगे ।' सुना है, आप भी जायेंगे । हमारे गाँव में जाने पर मेरे हाथ का बनाया हुआ खाना पड़ेगा ।" क्षण-भर विचार करने के बाद गोसाईं ने कहा, "जाकर चाय बनाओ।" "पियेंगे न ?”
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"हाँ, पीऊँगा । चौके में तख्ते पर ही सारी चीजें हैं। वहीं टोकरी में बाँस के चार चोंगे भी पड़े हैं ।"
fsfe अन्दर चली गयी। थोड़ी देर बाद आहिना कोंवर अपनी गठरी - मोटरी संभाले बाहर निकल आया और बोला :
"हे कृष्ण, आपकी मति मारी गयी है क्या गोसाईजी ? डिमि के हाथ की
मृत्युंजय | 91