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________________ पहले तक वह हिरणी थी जंगली जीव, पर अब वह सुभद्रा बन गयी है । पुनर्जन्मवाद भी एक धोखा है ? इसके बावजूद है वह कितना सुन्दर और आकर्षक, और साथ ही साथ मन की सान्त्वना के लिए एक काल्पनिक आधार ! भिभिराम ने बात आगे बढ़ायी : "उस पर मेरा भी विश्वास है । लेकिन धूमकेतु की तरह ही अगर कोई किसी पर गिरा तो वह भी कुछ नहीं कर सकता । निश्चय ही वह ऐसा वैसा आदमी नहीं है । वह जितना देह बचाकर चलना जानता है, समय आने पर अपने को उतना झोंक भी सकता है। फिर भी बाघ, हाथी जैसे जंगली जानवरों को ध्यान रख एक-दो और बन्दूकें तो चाहिए ही । " "चाहिए कहने भर से ही कहीं से मिल तो जायेगी नहीं। दो दिनों से चक्कर लगा रहा हूँ, पर अभी तक एक भी तो नहीं पा सका हूँ । अब एकमात्र रूपनारायण पर ही भरोसा है । पता नहीं उसका क्या हुआ ?" गोसाईं ने अचानक प्रश्न किया । भिभिराम कुछ चिन्तित हो उठा : इस देश में घड़ी के काँटे मिलाकर, ठीक समय पर काम करना कठिन है । मन के काँटे मिलाने पर ही काम होता है । कामपुर हो या नगाँव या फिर रोहा, सभी जगह पुलिस और मिलिटरीवाले जनता से सामूहिक जुर्माना उगाह रहे हैं । सवेरा होने के पहले ही वे बैठकखाने का दरवाज़ा खोलकर घरों में घुस आते हैं । कुहराम मचाकर सोये हुए लोगों को जगाते हैं, उनसे जुर्माना माँगते हैं । जगने पर बेचारे आँखें मलते यदि इतना ही पूछ बैठें कि जुर्माना किस बात का है, तो वे थप्पड़, लात घूंसे और बन्दूक़ के कुन्दों से मार-मारकर कहते हैं 'भोले बनते हो ? मृत्यु-वाहिनी को तुम लोग ही बढ़ावा देते हो, उन्हें पाल-पोस रहे हो, चन्दे देते हो, घर में छिपाकर हमें धोखा देते हो, घर के पिछवाड़ों से भगाकर हम पुलिसवालों को गालियाँ देते हो; ठेकेदार के आने पर उसे बाँस, लकड़ी, चावल दाल, मिर्च-मसाले, आलू-अरूईकुछ भी नहीं होने के बहाने बनाते हो; जान-पहचानकर भी पुल तोड़नेवालों, सड़क काटनेवालों को बताते नहीं हो और इस समय पूछते हो कि जुर्माना कैसा ! सरकार ने सामूहिक जुर्माना किया है। हम उसे ही वसूलने आये हैं । आदमी का घर देखकर ही जुर्माना लगाया गया है। नक़द देना है तो बीस रुपये, नहीं तो उसके बदले बर्तन वग़ैरह देने होंगे। वह भी नहीं दे सकते हो तो औरत के गहनेजेवर उतारकर ही दो । कोई भी सुनवाई नहीं होगी । जहाँ कहीं से भी हो, दो । नहीं देने पर मार तो पड़ेगी ही, गिरफ्तार भी किये जाओगे और घर का सामान नीलाम पर चढ़ा दिया जायेगा ।' - घर के भीतर सीधे बूट पहने हुए ही घुस आते हैं वे । उसके घर की भी कुर्की होने की बात थी । ऊपरी असम हो या निचला असम, कहीं भी बाक़ी नहीं 82 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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