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________________ है। सब जगह एक ही बात है। उसके बाद वे सबको गिरफ्तार कर थाने ले जाते हैं। दुधमुंहे बच्चों को लिये माताओं; फ्रॉक, गमछे, फटे जाँघिया पहने लड़केलड़कियों को गाय-बैल की तरह हाँफते हुए थाने में पहुंचा देते हैं। जो भी उस. दृश्य को देखता है, हाय-हाय कह उठता है। कुछ तो क्रोध से अग्निशर्मा बन जाते हैं और कुछ दुख से कलङ की धारा की तरह आँसू बहाने लगते हैं। -आजकल शान्ति-सेना पर भी अनेक दायित्व आ पड़े हैं : जैसे, बन्दी बनाये गये लोगों को थाने से ज़मानत पर छुड़ाना, थाने में उन्हें खिलाने-पिलाने और वकील खोजकर जेल से छुड़ाने की व्यवस्था करना और अन्त में भाड़े वगैरह का इन्तज़ाम कर उन्हें घर तक पहुँचाना आदि-आदि। कई बार रोगी और बीमार जन के लिए डोली-खटोली को व्यवस्था करनी पड़ती है । तिस पर भी घर लौटने पर लोग न केवल पुलिस और मिलिटरीवालों को, बल्कि वॉलण्टियरों को भी गाली-गलौज करने से नहीं चूकते। वॉलण्टियरों के लिए जो नाना प्रकार के सम्बोधन और गाली-गलौज प्रयुक्त होते हैं, उन्हें सुनकर अनुभव-हीन और कच्चे लोगों को क्रोध आये बिना न रहे। -किन्तु महात्मा गांधी के इन स्वयंसेवकों का क्या कहना ! ये एकदम भिन्न प्रकार के प्राणी हैं। सब कुछ सुनकर भी सह लेते हैं, रोनेवालों को सान्त्वना देते हैं, गाली सुनने पर भी मुस्कराते रहते हैं और बार-बार भगाये जाने पर भी समझदारों की तरह धीरज बाँधकर बैठे रहते हैं। फिर लोगों में राग-द्वेष, क्रोधशोक-ये सारे भाव रहते ही कितनी देर तक हैं, यही सोचकर गांधीजी के ये वॉलण्टियर उस मनोभाव के मन्द होने तक प्रतीक्षा करते हैं। ग़ज़ब का धैर्य है इसमें ! मनुष्य का स्वभाव भी वृक्ष की नाई है। डाल-पात काट लिये जाने पर वृक्ष को दो-एक दिन तो पीड़ा अवश्य होती है, लेकिन उसके बाद उसका घाव सूख जाता है। ठीक वही हालत मनुष्यों की है। __-शायद रूपनारायण भी इसी काम में जुटा है। तिस पर भी वह पण्डित है। शास्त्रों का अध्ययन भी उससे छूटा नहीं है । बन्दूकें एकत्र करने के लिए कहे जाने पर वॉलण्टियर पहले पुरजोर विरोध करते हैं, किन्तु बाद में जब रूपनारायण समझा देता है तो सभी स्वीकार कर लेते हैं कि बात बिलकुल ठीक ही है : कायर के लिए हिंसा या अहिंसा का कोई मूल्य नहीं होता । फिर गांधीजी भी तो सबको अपना भार स्वयं ही सँभालने को कहते हैं। इस विकट परिस्थिति में अपनी बुद्धि ही साथ देती है। रूपनारायण द्वारा समझाये जाने पर मूर्ख भी समझदार बन जाते हैं। कभी-कभी समझाते समय वह घड़ी देखना तक भूल जाता है। समय का उसे ध्यान ही नहीं रहता। कभी-कभी तो मुसीबत आने पर भामना भी भूल जाता है । उसके साथ यही मुश्किल है। भिभिराम ने कहा, "यदि कोई अघटनीय घटना नहीं घटी तो वह आयेगा मृत्युंजय | 83,
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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