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________________ आहिना कोंवर तमतमा उठा : "हे कृष्ण, क्या वह भी मनुष्य की गितनी में है ? वह तो किसी अन्धे देश के व्यक्ति-सा लगता है । भला देखिये तो, हे कृष्ण, क्या लयराम को ज़िन्दा मछली की तरह फाँसकर लाना चाहिए था ! वह स्वभाव से लाचार है, हे कृष्ण, यानी मैं लयराम के बारे में कह रहा हूँ। उसकी ही कृपा से हम लोग मछली-अछली खा-पी रहे हैं। ज़रूरत पड़ी तो उससे अफ़ीम भी मिल जाती है। मुसीबत में दोचार पैसों से भी वही मदद करता है, हे कृष्ण ! और वह साल में दो-तीन बार लोगों को भोज भी खिलाता है। एक बार बिहु में, एक बार महापुरुष शंकरदेव की तिथि पर और फिर बाढ़ के उतर जाने पर । हे कृष्ण, इस पाखण्डी ने उसे एकदम पुतला बनाकर रख दिया है।" गोसाई गम्भीर बने रहे । बोले : "आतन बूढ़ागोहाई की एक उक्ति याद है आप लोगों को ? 'घरुवा पोखर का पानी उलीचने में सिंघी मछली भी आठ-दस व्यक्तियों को बींध लेती है।' फिर यह तो युद्ध ही है, इसलिए थोड़ा मतभेद होने पर भी आप लोगों को सब कुछ सँभाले हुए ही चलना है । धनपुर के बारे में अभी कुछ न कहें। राजा से भी मैं यही कह आया हूँ। ग़लती किसकी है, आखिर बात क्या थी—इन सब पर पंचायत में विचार किया जायेगा। अभी काम करने का समय है । यहाँ रुकने से काम नहीं चलेगा । चलिये, अव सूरज भी निकल आया है।" "हे कृष्ण ! कमर दुखने लगी है, गोसाईजी । अब तो शरीर में ज़ोर भी नहीं रह गया । बूढ़े बाघ से कोई नहीं डरता । हिरण भी गाल चाटने चला आता है। इसे आपने लेकिन, बहुत बढ़ा-चढ़ा दिया है। मूर्ख को सिर पर चढ़ा लेना विपदाजनक है, हे कृष्ण...' कहते हुए कोंवर भी चलने की तैयारी करने लगे। तभी भिभिराम ने मुसकराते हुए कहा : "कोंवर झूठ-मूठ सन्देह कर रहे हैं। हम भोजन करते हैं पांचों अंगुलियों से लेकिन जब अँगूठा ठेलता है तभी खाना भीतर जाता है। धनपुर जैसे शरारती को सँभालने के लिए ही तो आप जैसे साथियों को लाया हूँ। आप स्वयं अपने को छोटा न बनायें।" __ आहिना कोंवर हाथ में लाठी लिये हुए हाँफते-हाँफते चल पड़े। चलते समय लम्बोदर गणेश के आगे उन्होंने एक बार अपना सिर झुकाया। गोसाईं ने भिभिराम से पूछा, “धनपुर और मधु को गये काफ़ी देर हो गयी। वे अपने सामान को ठीक-ठाक ले गये हैं न ?" ___“हाँ, ले गये हैं। धनपुर के हाथ में रिच, दाव और लोहे का एक डण्डा है । मधु को बन्दूक बड़ी होशियारी से ले जानी पड़ी है। वे अब तक कपिली को पार कर चुके होंगे।" 74 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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