SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। मेरी मौत पर सबसे अधिक वह ही रोयेगी और लोग तो आह-ओह कर रह जायेंगे। -कहेंगे, 'हाय राम! दयालु आदमी था।' कुछ और लोग कहेंगे कि 'इकतारा के तार की तरह ही सीधा और साफ़ दिलवाला था।' स्त्री और पुरुष का यह मेल कितना आश्चर्यपूर्ण है कि वह दोनों एक-दूसरे के लिए इस प्रकार समर्पित हो जाते हैं । एक प्राणी दूसरे के लिए इस प्रकार सोचता है। जो भी हो, ऐसा सोचना ही आदमीयत की पहचान है। -आनेवाली विपदा के बारे में सोचना अच्छा नहीं। भला मैं मरूंगा ही क्यों ? अब तक तो सब काम सुचारु रूप से ही हुआ है। अलग हो जाने के बावजूद लयराम अभी अपनी मुट्ठी में है ही। बानेश्वर राजा, वह ठहरे ज़िद्दी स्वभाव के । न तो उनकी जुबान पर लगाम है और न मन में स्थिरता ही। हां, लयराम को उनकी नजरों से दूर ही रखना पड़ेगा। फिर जब पंचायत बैठेगी तब लयराम को सबसे अधिक डाँट-फटकार वे ही सुनायेंगे। ऐसे व्यक्ति के साथ शान्त वातावरण में ही काम करने का आनन्द मिलता है। इस लड़ाई के मोर्चे पर तो उन पर गुस्सा ही हो आता है। कभी-कभार क्रोध और आनन्द एक जैसे लगने लगते हैं। दधि ठहरा बुद्धिमान । वह बानेश्वर राजा को किसी-न-किसी तरह संभाल लेगा। सिर्फ़ उस रखैल को सँभालना कठिन होगा। किन्तु वह भी हमारी गुप्त योजना की सूचना शइकीया को देगी नहीं। इन बन्धनों के बीच ही तो मायङ के लोग रह रहे हैं। वरना इतने पहरेदारों और इधर की बात उधर फैलानेवाले चुगलखोरों के होने पर इस काम की सूचना सरकार को ज़रूर मिल जाती। ___ गोसाईं को अपने आगे अचानक बरगद का एक विशाल वृक्ष दिखाई पड़ा। पास ही एक विशाल चट्टान पर लम्बोदर गणेश की एक मूर्ति उत्कीर्ण थी। सहज ही यह भान नहीं होता था कि वह मूर्ति गणेश की ही है। वहीं बैठे आहिना कोंवर और भिभिराम आँख-कान बन्द किये पान चबाने में मग्न थे। आहिना अचकन और धोती में था। उसके सिर पर एक पगड़ी थी। माथे पर एक गाढ़ी लम्बी रेखा भी उभर आयी थी। मुंह में ताम्बूल लिये आहिना कोंवर ने कहा : "वह तो एकदम जोरू का गुलाम है,हे कृष्ण।" "किसकी बात कह रहे हो कोंवर ?" आहिना के आगे रुकते हुए गोसाईंजी ने पूछा । इस बार भिभिराम आँखें खोलकर खड़ा हो गया और गोसाईं की ओर देखते हुए बोला : "धनपुर की, और किसकी?" "धनपुर के लिए इतना क्रोध क्यों ?" "वह पहाड़ की तरह अटल जो है।" भिभिराम हंस पड़ा। मृत्युंजय / 73
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy