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________________ सत्र आते-जाते देखते हैं इसलिए वहाँ आशंका की कोई बात नहीं थी । गोसाई धीरे-धीरे चौकीघाट पार कर गये । उसके बाद शुरू हो जाता है, घना जंगल । तब तक सूर्य भी निकल आया । निराले रंगों के घोड़ों पर सवार सूर्य ने अपनी सुदूर की यात्रा आरम्भ कर दी । जंगल के बीच एक सँकरी-सी पगडण्डी थी जो ओस गिरने के कारण फिसलन भरी हो गयी थी । अग़ल-बगल फैली काई पर जोंकें रेंगती दीख रही थीं। छत्तन के एक पेड़ पर बैठे कुछ बन्दर गोसाई की ओर घूर रहे थे । एक पेड़ से लिस्सा चू रहा था। शायद वह लाह या धुना का पेड़ था । पेड़ में कहीं छिपी एक बुलबुल गा रही थी। गोसाईं ने ऊपर की ओर देखा, पर कुछ दिखाई न पड़ी। पेड़ के पत्तों से रोशनी छनकर नीचे फैल रही थी । उसमें कुछ कपौ फूल चमक उठे थे । कुछ और पक्षियों का कलरव सुन साईं का मन कातर हो उठा। वे समझ नहीं पाये कि वह पक्षियों की मिली-जुली आवाज़ थी या स्वयं उनकी पत्नी गोसाइन की। उन्हें लगा, मानो किसी ने सुनहले फूलों को रेशमी धागों में पिरोकर आकाश में टाँग दिया हो। या किसी लड़ाई के नौसिखिये सिपाही रो रहे हों। या कि यह कहीं मौन की ही आवाज तो नहीं ? जंगल को हिला देने वाली उस हृदय विदारक आवाज से उनका हृदय दहल उठा । चलते समय गोसाइन से बात न कर पाने का दुःख भी उन्हें विचलित करने लगा । गोसाईं के पग अब और तेज़ी से बढ़ने लगे थे । वे सोच रहे थे : गोसाइन सचमुच डर गयी है । वह इस तरह कभी डरी नहीं थी । पर डरने का कोई कारण तो है नहीं । यही न कि मैं मर जाऊँगा ? मरना तय है तो मरूँगा ही। ऐसा कहने में कुछ लगता नहीं, किन्तु सोचते ही हृदय काँप उठता है । कोई भी मरने के लिए तैयार नहीं होता। सभी जीना चाहते हैं । - अब तक की किसी योजना में कहीं चूक भी तो नहीं हुई है । कहीं पर भी कागज का टुकड़ा तक नहीं छोड़ा, जिस पर एक भी शब्द लिखा हो । समाचार-पत्रों में तस्वीर छपवाने सा यह काम तो है नहीं । वह सब तो सुखी और गपोड़ियों का काम है । वे लोग अपने वक्तव्य को जान-बूझकर समाचार-पत्रों में छपवाते हैं । कुछ भी नहीं छिपाते वे । जेल जाते समय उन्हें गेंदे की माला मिलती है और जेल से छूटकर बाहर आने पर भी । इस काम में न तो माला मिलनी है और न प्रचार ही होना है। छोटा-सा पुर्जा भी मिल गया तो पकड़े जाने का डर 1 । कुशल कोंवर के कुछ अक्षर ही उसके लिए काल बन गये । उसे फाँसी भी हो सकती है । इन्द्रेश्वर, मेठोन आदि को भी सज़ा हुए बिना न रहेगी । - सुना है, अब कोंवर की पत्नी जीते जी विधवा की तरह ही रोती रहती है । गोसाइन के प्राण भी आशा-निराशा में आन्दोलित हैं । हिरणी के क्रन्दन ने भौत की सूचना जो दे दी है। बस, इसी आशंका में संतप्त बिल्ली-सी तड़प रही 72 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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