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________________ करने के लिए प्रयत्नशील हैं। जो अहिंसा और असहयोग की बात सोचते हैं, वे भी जनता को संगठित करें। ऊपरी असम की जनता ने वैसा किया भी है। वे जोरहट के मलिया, बरुवा, कटकी, गोस्वामी-सभी जगह पर संगठन बनाने में जुटे हैं। इधर बरुवा, कोंवर, गर्ग आदि हमारे साथ हैं-हमारे विचारों के साथ। हाजारिका आदि मारिटा की ओर जाकर विदेशी सैनिकों से बारूद वगैरह जुटा लाये हैं । आदमियों के जुटाने का काम चल रहा है । यह ठीक है कि काम में तेजी नहीं हैं, और बहुत सारे लोग बैठ भी गये हैं। गोलाघाट के सरुपथार में गन्धसरं गांव के अनेक जन गिरफ्तार कर लिये गये हैं। सरुपथार में रेलगाड़ी उलटने में कहीं-नकहीं ग़लती रह गयी थी। यह भाग्य का ही फेर है कि उनके लिए एक अहिंसक व्यक्ति ही दोषी ठहराया गया। इसी कारण उधर के सहयोगियों का दिल बैठ गया है। ___-निचले असम में चौधुरी आदि काम में जुटे हैं। लेकिन सरभोग का हवाई अड्डा जलाने के अलावा कोई काम तो हुआ नहीं । नियमित संगठन भी समाप्त हो गया है । ग्वालपारा में निधन कोच की हत्या कर दी गयी। दूसरे कुछ स्थानों पर हुई हत्याओं की तरह ही उसकी भी हत्या हुई है। सब-के-सब नेता जेल में हैं। इधर लड़के-लड़कियाँ स्कूल-कॉलेजों में लौटने को तैयार हैं। कम्युनिस्टों के अतिरिक्त अन्य छात्र-नेता भी यही चाह रहे हैं। -राष्ट्रीय भावधारावालों की नीयत अभी ठीक है। किन्तु उनमें संगठन का अभाव है। इधर ब्रिटिश फ़ौज की ताक़त बढ़ती जा रही है । सब जगह अमेरिकी, चीनी, अफ्रीकी, आस्ट्रेलियाई सैनिक भरे जा रहे हैं। भारत के अन्य हिस्सों में भी आन्दोलन ठण्डा पड़ता जा रहा है। इसीलिए गुरिल्ला-वाहिनी गठित करने में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इन सारी बातों पर कमारकुची में या उसके बाद और कहीं विस्तारपूर्वक विचार करना होगा। अब एक विस्तृत योजना बनाकर काम करने का समय आ गया है। नगांव के कार्यकर्ताओं में अभी संगठन है । मनोबल भी है। यहीं आकर कोई योजना बनानी होगी। चलते-चलते गोसाई एक खेत के मेंड पर पहुंचे। खेत में धान के पौधे लहलहा रहे थे । ठण्डी हवा के झोंके लगते ही उनके रोयें खड़े हो गये । उनका कलेजा काँपने लगा। थोड़ी दूर पर झील से कुछेक पक्षी उड़ चले। पंखों की फड़फड़ाहट से ही गोसाईं उन्हें पहचान गये । गोसाईं को अपने बचपन की याद है : तब किसी आदमी की आहट पाकर भी डरते नहीं थे ये पक्षी । तब इस दुर्गम झील में कभीकभार ही कोई शिकारी बन्दूक लेकर शिकार करने आता था। लेकिन अब तो शिकारियों का तांता लगा रहता है । आजकल डिपुटी-कमिश्नर से लेकर साधारण किरानी-चपरासी तक हर कोई यहाँ शिकार करने चला आता है। इसीलिए वे अब आदमी की आहट पाते ही फुर्र से उड़ जाते हैं । कभी-कभी इस झील में दूर 70 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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