________________
हुए मरूंगा । आप ठहरे राजा आदमी । इसलिए आप कुछ किये बिना भी चल जायेंगे। हम नहीं चल सकेंगे। जान लीजिये, मैं नायक नहीं हूँ, सैनिक हूँ, राजा नहीं गयी-गुज़री प्रजा हूँ ।"
" आपकी तरह मैं जुबान तो चला नहीं सकता गोसाईंजी, लेकिन इतना याद रखिये कि आप लोग अत्याचार कर रहे हैं।" राजा ने उत्तर दिया । तभी दधि बोल उठा :
"आप राजा हैं, राजा बनकर ही रहें। हमारी शान्ति सेना आपके घर पहुँच गयी होगी । दोनों को हम अभी ससम्मान शान्ति सेना शिविर में लायेंगे । कहा नहीं जा सकता कि अपने मित्र से आपकी भेंट होगी कि नहीं । आप ख़ ुद समझदार हैं । आपकी सहायता के बिना हमें थाह पाना मुश्किल है। मैं यदि झूठ बोलूं तो मुझे दस भक्तों की हत्या करने का पाप लगे । अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए हम लड़ाई के लिए तैयार हुए हैं । ऐसी स्थिति में हमारी ओर देखते हुए आप धीरज रखें।"
इस बार बानेश्वर राजा कुछ नरम पड़ गये । बोले :
I
"नाप-तोलकर बातें करना नहीं जानता । यह तुम लोंगों का काम है । पर देखना, बरगद को उखाड़ फेंकने पर विश्राम के लिए कहीं जगह भी न मिलेगी ।" बानेश्वर राजा तेज़ी से लौट पड़े। उनके पीछे-पीछे उनका शिकारी कुत्ता भी चलने लगा ।
गोसाई ने कहा, "राजा का मन बड़ा दुर्बल है । भली भाँति ध्यान रखना । लौटने पर सब कुछ ठीक हो जायेगा ।"
"मैं भी वही सोचता हूँ ।" दधि ने उत्तर दिया । " अभी मैं उन्हीं के यहाँ जाऊँगा । टाल-मटोल करेंगे तो ठीक बात न होगी ।"
-
गोसाईं बोले, "नहीं, कोई टाल-मटोल नहीं करेंगे। तुम अपने साथ कॅली दीदी को भी लेते जाना । कॅली समझा-बुझा सकेगी । दोनों पुराने सहयोगी हैं।" इतना कह गोसाईं आगे बढ़ आये। उन्हें लगा मानो खुद उनके क़दम नहीं बढ़ रहे, वल्कि कोई मशीन है जो उन्हें बढ़ा रही थी । गोसाईं सोचते जा रहे थेआन्दोलन भली भाँति नहीं चल रहा है। नेता-जन दो दलों में बंट गये हैं। एक दल अहिंसा के पथ पर बढ़ना चाहता है, तो दूसरा हिंसामार्ग को ग्रहण कर रहा है। उनमें मतभेद होने के कारण कार्यकर्ताओं में भी मतभेद हो गये हैं । कुछ चुपचाप बैठे हैं तो कुछएक गुरिल्ला युद्ध की बात सोच रहे हैं। यही तो सुनहला अवसर है: ब्रिटिश फ़ौज बर्मा से भाग रही है । जापान सेना कोहिमा पहुँच चुकी है। ब्रिटिशों के भागने पर वह यहाँ जापानी साम्राज्य क़ायम करना चाहेंगे ।
- हम ऐसा होने नहीं देंगे। हम न ब्रिटिशों को चाहते हैं और न जापानियों को । हम एकान्त में ही गुरिल्ला - वाहिनी संगठित कर अपनी सरकार क़ायम
मृत्युंजय | 69