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बानेश्वर राजा ने इस पर अपने को और भी अधिक अपमानित महसूस किया। यह नहीं कि उन्हें यह बात बुरी लगी, बल्कि इसलिए कि उनकी बात मानी नहीं गयी । राज-पाट न होने पर भी राजा तो आख़िर राजा ही होता है । बैठकखाने में अब भी उनकी शाही पालकी टँगी है । पूर्वजों को ढाल-तलवार भी सुरक्षित है । अंगरेज़ों के चले जाने पर उन्हें पुनः अपना राज-पाट तो सँभालना ही पड़ेगा । लयराम कभी-कभी ऐसी बातें उनसे कहता भी रहा है जिसे सुनकर उनका मन भी बदल जाता है। उसके द्वारा खुशामद किये जाने पर ही बानेश्वर राजा यह बात गोसाई से कहने को राजी हुए थे। अब मायङ में भी राजा की बात न चलेगी तो और कहाँ चलेगी ? उन्होंने गुस्से में भरकर कहा :
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" गोसाईजी, आपने सोच-विचारकर नहीं कहा। लयराम ने मुझे सारी बातें उसने कुछ भी नहीं छिपा रखा है । शायद रखेल की नाराज़ हैं । हैं न? और देश के नाम पर बदला लेना
साफ़-साफ़ बता दी हैं। वजह से ही आप उससे चाह रहे हैं उससे !”
गोसाईं को भी क्रोध आ गया । बोले :
"उस पर भी विचार करेंगे । लौट आने दीजिये। फिर आपके दरबार में ही पंचायत बैठेगी। यदि प्रतिशोध की भावना से मैंने कुछ करवाया होगा तो मैं कोई भी सजा सह लूंगा । लयराम को जाकर बता दीजिये और आप स्वयं भी विचार कीजिये । हम लोग एक विशेष प्रयोजन में बँधकर ही काम कर रहे हैं । उस संकल्प से अभी कोई इधर-उधर नहीं हो सकता। न तो आप और न मैं, और नाही राम । यदि कोई दूसरे ढंग से सोचता है तो भूल उसी की है । मुझे तो इतना ही कहना है । मेरे पास समय नहीं । मैं जाता हूँ । मायङ और दैपारा का भार अब मुझ पर नहीं, दधि पर है । उसी से पूछिये। मैं चलता हूँ ।"
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गोसाईं जाने को तत्पर हो गये ।
"मैं भी जा रहा हूँ ।" बानेश्वर ने कहा । "इन नादान लड़कों के साथ बकवास करने की मुझे फुर्सत नहीं । आप लोगों की कुनीतियों को वहन करने के लिए मैं कांग्रेस में नहीं आया था। गांधीजी की बात सुनकर ही सहयोग दिया था। पर आप हैं कि उनके बताये हुए मार्ग को छोड़ दूसरी ही राह पकड़ रहे हैं । आप सब ने हिंसा का मार्ग अपना लिया है। इस मार्ग पर चलने के लिए आपको किसने कहा ? कहिये तो ज़रा, मैं भी सुनूं !"
"उसका भी विचार पंचायत में ही किया जायेगा ।" गोसाईजी गम्भीर होते हुए बोले । " आप सब कुछ जानकर भी अनजान बन रहे हैं । मृत्यु - वाहिनी किसने गठित की ? शान्ति सेना किसने बनायो ? गुरिल्ला युद्ध के लिए किसने परामर्श दिया था ? आप सारी बातें जानते हैं। मैं सिर्फ़ एक काम के लिए जा रहा हूँ । बचा रहा तो दूसरा काम करूँगा । यदि नहीं बचा तो कर्तव्य करते
68 / मृत्युंजय