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"पानी गर्म हो गया है। चाहो तो नहा भी सकती हो। नहा-धोकर जी करे तो चाय पी लेना । तब तक मैं तैयार होता हूँ । सवेरा होने से पहले ही मायङ पहुँचना है। लेकिन तिलेश्वरी के बारे में तुमने कुछ नहीं बताया ।"
गोसाइन ने पान उनके आगे बढ़ा दिया। उसके अलावा एक डिबिया में कुछएक पान-बीड़ा अलग से भी रख दिये । बोलीं :
"ढेकिया जुली में भी ठीक वैसी ही घटना हुई है। आस-पास के कछारी, कोच आदि सब एक साथ ही थाने पर तिरंगा फहराने गये थे । इसके पहले कोई सभा भी हुई थी शायद । अब कॅली दीदी को सब कुछ विस्तार से बताने का मौका भी तो नहीं मिला । तिलेश्वरी भी गुलाब के लहलहाते हुए पौधे की नाईं निर्दोष थी। अभी उम्र ही कितनी हुई थी ! सिर्फ़ बारह साल एकदम कच्ची वय । पुलिस ने उसे भी गोली से उड़ा दिया । "
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गोसाइन की आवाज़ भारी होती जा रही थी। उन्होंने आगे कहा : "कौन जानता है कि आगे किसके भाग्य में क्या है। कितनों की कोख और कितनों की माँगें सूनी होंगी। कोई घायल होगा, कोई अपाहिज ।”
"अब आपद - विपद की बातें क्यों कर रही हो ?" गोसाईं ने टोका । "झील में मछली पकड़ते समय कभी-कभी आदमी खुद ही डूब मरता है । फिर यह क्यों सोचती हो कि इस युद्ध में विघ्न-बाधाएँ आयेंगी ही नहीं। यह सब तो लगा ही रहता है। इनको झेलते हुए ही आजीवन जुटकर काम करते रहना मनुष्य का धर्म है।... मैं और नहीं रुकूँगा, चलने का समय हो गया है।" उन्होंने पनबट्टे से एक पान-बीड़ा उठाया और उसे मुँह में डालते हुए गोसाइन की ओर बिना देखे ही कपड़े बदलने के लिए कमरे में चले गये । गोसाइन वहीं बैठी रहीं ।
कपड़े बदलकर हाथ में गठरी सँभालते हुए उन्होंने गोसाइन को आवाज़ दी । गोसाइन बाहर आ गयीं, पर बोलीं नहीं । गोसाइन के मन को बड़ा आघात लगा । वे आँगन में उतर गये । बथान की तरफ़ नज़र दौड़ाने पर उन्हें चारों ओर सूनासूना दीख पड़ा : मधु के चले जाने से गाय-बैल की देख-भाल करने वाला भी कोई नहीं रह गया था । कल से ही घर में दूध नहीं होगा । बग़ीचा भी उजड़ चुका है। खेती भी नहीं हुई है इस बार ।
तभी कहीं से दौड़ता हुआ एक कुत्ता आया और गोसाईं के पैरों में कूं-कूं करने लगा । कुत्ता बानेश्वर राजा का था । गोसाईं ने उसे पहली नज़र में ही पहचान लिया । वे बाहरी फाटक की ओर बढ़ गये । उन्होंने देखा : दो जन वहाँ एकान्त पाकर बातचीत कर रहे हैं।
"कौन ?" गोसाईं ने पूछा ।
"मैं हूँ बानेश्वर राजा और ये हैं दधि मास्टर । गोसाईजी, जरा इधर तो आइये । जाने के पहले इन दो बातों का फ़ैसला करते जायें।"
66 / मृत्युंजय