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________________ रख उन्होंने अपना मुख अलाव की ओर कर लिया। कष्ट अनुभव करते हुए बोले: "लगता है, मधु की बात कहते-कहते मेरी साँस की बीमारी भी उभर आयी गोसाईं के मुंह से कुछ देर तक आवाज न निकली। गोसाइन ने कहा : "अब इन सारी बातों को मुझे सुनाकर क्या होगा ! सारी रात वही सब तो सुनती रही हूँ। आहिना और भिभिराम कमारकुची गये हैं, तो दधि पर दैपारा की देखभाल करने का जिम्मा है वगैरह-वगैरह, मुझे सब मालूम है । क्या मुझे यह नहीं पता कि वह रखैल भी यहीं आकर पड़ी है और लयराम एवं नाविक शान्तिसेना के शिविर में रखे गये हैं। लेकिन यह सब करने से क्या होगा ? जब तन ठीक नहीं, तो अकेला मन कहाँ तक खींचकर ले जायेगा। फिर अस्त्र-शस्त्रों से लैंस मिलिटरी के सामने सिर्फ कुछएक जन क्या कर सकेंगे? ये सब वैसे ही मरेंगे जैसे तिलक, गहपुर में कनकलता, ढेकियाजुली में तिलेश्वरी..." एकाएक गोसाइन चुप हो गयीं। उन्होंने पाया कि गोसाईंजी उन्हें आँखें फाड़करे देख रहे हैं। ___"यह सारी ख़बर तुम्हें किसने दी?" गोसाईंजी ने अपनी पीड़ा को दबाकर पूछा। "कॅली दीदी ने । वह कल ही आयी हैं।" गोसाइन ने आगे बताया, “यही नहीं, वह एक हृदय विदारक खबर भी लायी हैं। वही ख़बर उन्हें पहुँचानी थी इसीलिए वे यहाँ रुकी नहीं । बाहर से ही वे दधि के घर चली गयीं। उस खबर को सुनाते हुए मुझे भी बड़ा बुरा लग रहा है।" "बताओ तो सही, क्या बात है ?" गोसाईजी की आवाज़ अब भी सहज नहीं हुई थी। बीच-बीच में खाँसी उभर आती थी। बोले, "मकरध्वज होगी क्या ?" "हां, है । कविराज द्वारा भिजवायी गयी सारी दवाइयाँ तख्ते पर ही बर्तन में पड़ी हैं । खरल भी वहीं है। अदरक भी। एक ख राक बनाकर खा लें और साथ में रख भी लें। नहीं तो चलना-फिरना मुश्किल हो जायेगा। मैं स्वयं ही तैयार कर देती, लेकिन मेरी देह तो अभी बासी है।" पत्नी की सलाह पर गोसाईं ने मकरध्वज पीसकर अदरक के साथ पी लिया। इसी बीच गोसाइन ने भी उनकी गठरी में मकरध्वज और अदरक डाल दिया। लौटकर बोलीं : "सामान ठीक है, सिर्फ़ खरल साथ में रख लें। चाय, गुड़, कटोरी आदि सारी चीजें गठरी में ही हैं। थोड़ी देर आराम कर लीजिये । अभी तो सवेरा भी नहीं हुआ । हाँ, और वह ख़बर नहीं सुनना ?" ___ "क्या बात है, बताओ।" 62 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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