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________________ पानी को खौलता देख गोसाई ने अलाव की कुछ लकड़ियां हटाकर आँच कम कर दी। फिर छन्ने से उसे एक दूसरी कटोरी में छान लिया। बिना दूध की चाय : ख न की तरह एकदम लाल । बर्तन से गुड़ की एक डली ली और चाय पीने लगे । गुड़ के साथ वे चाय की चुसकी लेते हुए बोले : ___"तुम इतनी चिन्ता मत करो। जो होना होगा, वही होगा। तुमने देखा ही था, अब सब कुछ तय हो चुका है। मैंने माणिक बॅरा और जयराम को एक साथ भेजा है। वे धिपुजी पाही पर जाकर रुकेंगे । वह गाँव जयराम की मुट्ठी में है। वह नाव का बन्दोबस्त भी वहीं कर लेगा; फिर दाल, चावल, बर्तन आदि का इन्तजाम कर गांव की ओर बढ़ जायेगा। ___ "माणिक बॅरा नेपाली बस्ती में दूध खरीदने के बहाने वहाँ के लोगों के मन की थाह पाने का प्रयत्न करेगा। यदि उनके मन को बदलने में वह सफल हो गया तब तो कोई बात ही नहीं रह जायेगी। सम्भवतः वह ऐसा कर लेगा। उसे नेपाली भाषा भी आती है । इसलिए नेपाली बस्ती हमारे साथ हो गयी तो कोई विशेष चिन्ता नहीं रह जायेगी । और धनपुर, वह शेर की माँद में भी हाथ डाल सकता है। गारोगाँव में ही रहेगा वह । वहाँ डिमि नाम की एक महिला से उसका पुराना परिचय है। वहीं रुककर हमारी प्रतीक्षा करेगा। ___ "मधु सीधे कर्म-स्थली पर ही जायेगा। वहीं पहाड़ी पर एक अच्छे स्थान पर चुनाव कर वह बन्दूक संभालकर डट जायेगा। गश्ती दल की गतिविधि का पता करेगा। वह पहाड़ी है भी दुर्ग की तरह । वहाँ के घने जंगलों में सूरज की रोशनी भी नहीं पहुँच पाती है। वह स्थान बाँस और बेंत की झाड़ियों से भरा हुआ है; पहाड़ी कठलुवा बनसोम, सेमल और मदार के पेड़ों से आच्छादित । उसके बीच से पहाड़ी के उस पार रेलवे लाइन के मोड़ तक उतरने के लिए भी वह एक राह बना लेगा। हाँ, यह काम बड़ी सावधानी से करना होगा। रेलवे लाइन पर गश्ती दल आता-जाता रहता है। उसे एक चौकी से दूसरी चौकी तक जाने में कितना समय लगता है, मोड़ कितने समय तक गश्तियों की आँख से ओझल रहता है, फिश प्लेट खोलने में कितना समय लगेगा, काम समाप्त कर पहाड़ी पर चढ़ने में कितना समय लगेगा-इन सबका हिसाब लगाने के लिए भी मैं उसे कह चुका हूँ।" ____ गोसाई ने फिर एक गुड़ की डली ली और चाय की चुस्कियाँ लेने लगे। तभी गोसाइन ने पूछा : "उसे तो बुखार आ गया है । क्या वह यह सब कर लेगा?" "कर लेने या न कर लेने की बात क्यों करती हो? उसे तो करना ही होगा। वह नहीं करेगा तो करेगा कौन ?" दो बूंट चाय लेते ही गोसाईजी खाँसने लगे। खाँसी बढ़ जाने पर उन्होंने चाय की कटोरी जमीन पर रख दी। छाती पर हाथ मृत्युंजय / 61
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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