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________________ चार रेलगाड़ी उलटने के लिए साथियों को कई टोलियों में भेजने के बाद गोसाईजी उधर से झील में नहाते भी आये । घर आकर उन्होंने धोती बदल ली। पिठागुडी और केले का जलपान कर वे अलाव पर चाय का पानी रखने को ही थे कि उनकी पत्नी भीतर से बिछावन छोड़कर वहीं आ गयीं। उनके सिर से आँचल खिसका हुआ था और गोरे-गोरे गालों पर आँसुओं की धार थी। गोसाईं ने मुसकराते हुए पूछा, "क्यों, क्या हुआ ?" बिछावन पर यों ही लेटी थी। सारी रात एक झपकी तक नहीं आयी। आप लोगों की बातें सुन-सुनकर कलेजा मुंह को आ रहा है। उसके बाद.." कहते-कहते गोसाइन रो पड़ों । गोसाईं ने अलाव की लकड़ियाँ उकसा दीं। आग की लंपट तेज़ हो गयी। उस पर भगौनी चढ़ाकर उसमें लोटे का पानी उडेल दिया। चारों ओर दृष्टि डालने के बाद वे चाय की डिबिया और गुड़ का वर्तन वहीं उठा लाये। फिर बोले : "एक बार मैंने सोचा था, भीतर जाकर सोने के लिए कह आऊँ। पर उन सबको समझाते-बुझाते ही रात बीत गयी। मन की बात मन में ही रह गयी। इन दिनों पत्नी की अपेक्षा क्रान्ति के साथी ही अधिक निकट हो गये हैं।" ____गोसाइन आँचल से आँसू पोंछती हुई बोलीं, “ऐसा मत समझिये कि इतने दिनों तक साथ रहकर मैं यह सारी बातें समझ नहीं पाती। सब कुछ समझ चुकी हूँ। कल रात आपने एक हिरणी का क्रन्दन नहीं सुना क्या ?" "ॐ हूँ।" गोसाईं ने अलाव को फिर कुरेद दिया। उसमें थोड़ी सूखी लकड़ियाँ डालने के बाद पासवाली हांड़ी में ही उन्होंने कटोरी धोयी। ऊपर तख्ते पर पड़े छन्ने को उतारा और उसमें थोड़ी-सी चाय-पत्ती छानते हुए बोले, "क्या हिरणी भी आदमी की तरह रोती है ? सुनने में तो तुम्हें थोड़ा बुरा लगेगा। दरअसल वह तुम्हारे मन का ही भाव है।" "लेकिन मुझे डर लग रहा है। यह सोच-सोचकर घबड़ा जाती हूँ कि कहीं आपको कुछ हो न जाय !" अपने को सँभालती हुई गोसाइन ने उत्तर दिया और फिर रो पड़ीं।
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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