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________________ तक नहीं देती मुझे । एक और भी बात है । अब छह महीने होने को आये कि इसके पैर भारी हैं । अर्थात् मेरी सम्पत्ति में अपना भाग बँटा लेने की भी धुन पकड़े है । मैं क्या करूँ तुम ही बताओ !” "यह सब तो ठीक नहीं। अच्छा मैं उन्हें ही समझाने-बुझाने की कोशिश करता हूँ । आप तब तक इनके साथ बातें कीजिये ।" और आँख से धनपुर को इशारा करते हुए मधु भीतर घुस गया । पुकारता हुआ बोला : लय राम देखता का देखता रह गया। मधु को "मधु, यह ठीक नहीं। वहीं एक महिला है ।" तभी लयराम की नज़र धनपुर के हाथ के दाव पर गयी। देखते ही घिग्घी - सी बँध गयो । ऊपर से धनपुर कड़का : "ख़बरदार जो ज़रा हिले या ज़बान हिलायी । इसे देखते हैं न ।” चाय का पानी खौल रहा था । चिलम धरती पर औंधी पड़ी गंधा रही थी । आग ठण्ड लगी थी । लकड़ियाँ जल चुकी थीं । लयराम भय से काँप रहा था । उसने समझ लिया था कि धनपुर की कथनी और करनी में अन्तर नहीं । यह तो दाव की धार गरदन पर भी उतार देगा। अलाव में लकड़ी डालने तक का साहस उसे नहीं पड़ा । धनपुर की बड़ी-बड़ी पैनी आँखें जमी हुई थीं । उधर मधु ने अन्दर घुसते ही पहले उस महिला का पता लगाया । देखा गाढ़ी नींद में सो रही है । फिर लयराम के कमरे में घुसा । यहाँ कई बार आ चुका था । इसका भी उसे पता था कि बिस्तर पर तकिये के नीचे लयराम बन्दूक रखता है । लैम्प जल ही रहा था । बन्दूक हाथ में उठाकर कारतूस खोजने लगा । देखा अलमारी में ताले में बन्द हैं । पलक मारते उसने बन्दूक के कुन्दे से अलमारी का शीशा फोड़ा और कारतूस की पेटी उठाकर बाहर निकल आया । 1 लयराम उबला : "तो डकैती करने आये थे यहाँ ?" साथ के साथ धनपुर की घुड़की कानों में आयी : "चुपचाप खड़े रहो और बिना एक शब्द मुँह से निकाले जैसे हो वैसे ही हमारे साथ चलो। हमारे पास एक पल का भी समय नहीं । चलो।" लयराम कहने लगा : " मगर इन कपड़ों में कैसे बाहर जाऊँगा ? मेरे ऊपर आख़िर इतना अविश्वास क्यों ? विपक्षियों के साथ तो मैं हूँ नहीं । और माझी भी आदमी तो मेरा ही है ! मुझे आप लोगों का व्यवहार सचमुच अच्छा नहीं लगा ।" मधु के चेहरे पर ज्वर की बेचैनी एक क्षण को छलक आयी । फिर भी तत्काल ही वन्दूक में गोलियाँ भरकर वह कड़े स्वर में बोला : " न लगे अच्छा, हमारे पास उपाय नहीं । गोसाईंजी ने कहा था, यहाँ पहुँचते मृत्युंजय / 57
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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