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नहीं छोड़ रहा। जब-तब आ धमकता है और उसकी आँखें क्या जाने क्या खोजती-टटोलती रहती हैं। पता नहीं कसे वह जान गया है कि इधर कहीं शान्ति-सेना का अड्डा है । बन्दूक के बारे में भी बड़ी बारीकी से पूछताछ करता 'रहता है । अब यदि बन्दूक आप लोगों को दे दूं तो आप तो पकड़े जायेंगे ही, मारा मैं भी जाऊँगा। आज तो अपनों पर भी विश्वास नहीं होता। इस माझी का ही कौन भरोसा !"
"क्या सचमुच ऐसा?" मधु ने अचकचाकर पूछा ।
"बिल्कुल । यह शइकीया का भी आदमी हो सकता है और तब उसे कल ही खबर लग जायेगी।"
मधु बिछावन पर उठकर बैठ गया : "तो आप यह कहना चाहते हैं कि यह भेदिया है ?" "ज़रूर।" मधु अलाव के पास को उठ आया और धनपुर से बोला :
"सुना तुमने ? उसे छोड़ देना ठीक न होगा। तुम अभी पीछा करो, उसे सिखा दो कि बीच में न आये।"
हाथ की चिलम नीचे रखते हुए बोला धनपुर :
"बड़ी कच्ची बुद्धि के हो भाई । हम केवल दो हैं। अलग-अलग हो जाने पर मुसीबत आ सकती है। हमारा एक साथ रहना ही उचित होगा।" आगे धीरे से कान में कहा : “सन्देह होने पर तो मैं इसे भी नहीं छोडूंगा। पहले खोज-खाज कर बन्दूक ले आइये । मैं तब तक इसे सँभालता हूँ। बाद को इसके साथ ही उसे भी धर दबोचूंगा। किसी ने भी ची-चपड़ की तो काटकर पानी में बहा दूंगा। और अगर सब कुछ ठीक रहा तो उसी की नाव से जाकर सत्र वाले घाट पर उतर जायेंगे।"
मधु को लगा कि धनपुर ठीक ही कह रहा है। बोला : __ "वानेश्वर राजा के घाट पर उतरना ठीक होगा । वहाँ गोसाईंजी को समाचार भिजवाना सुगम होगा।"
लयराम को सन्देह हो चला था। पूछने लगा : "इस तरह कानों-कानों क्या बात कर रहे हैं ?" दोनों मुसकरा दिये । उत्तर मधु ने दिया :
"जानते नहीं थे न ये । इसलिए आपकी इन पत्नी के बारे में पूछ रहे थे।" कहकर मधु और भी हँस दिया। फिर बोला : “मगर आपकी इस द्विधा का कोई कारण भी तो होगा।"
“सो तो है । मैंने जब से गोसाईंजी को सहयोग देने की बात कही है तब से मेरी यह पत्नी बराबर मिन्नतें कर रही है कि इन झमेलों में न पड़। कहीं जाने
56 / मृत्युंजय