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________________ चमक पड़े। यह धरती सचमुच लछमी है।" लयराम की बांछे खिल आयीं : "अरे मेरी यह नयी पत्नी ही जो लक्ष्मी ठहरी । जो कहती है, वह होता है।" __ मधु पूर्वजों के बनाये नियमविधानों का माननेवाला था। मुंह से कुछ भी बोले बिना वह बिछावन पर जा पड़ा । ज्वर उसे था ही। धनपुर यों ही कुछ नहीं बोला । उसे यही बात बड़ी बेतुकी लग रही थी कि घर की उन्नति होने न होने का कारण कोई स्त्री हो सकती है। धरती ही उपजाऊ न हो या फ़सल की ठीक से देखभाल न की जाये तो हाथ में कुछ आयेगा ही कहाँ से ! कुछ समय इसी में बीत गया। चुपचाप। तब गुदड़ी में लिपटे-लिपटे मधु ने कहा: “गोसाई जी ने मुझे क्यों भेजा, यह तो आपने पूछा ही नहीं !" लय राम गम्भीर हो आया। थोड़ी देर के बाद सवाल लौटाते हुए बड़ी चतुराई से बोला : "हाँ, इस बीच काम कितना एक आगे बढ़ा? मुझे तो चिन्ता हो चली थी।" "काम बहुत आगे बढ़ चुका है। हमें तो तुरन्त लौटना भी है ।" मधु ने उत्तर दिया। इस बीच माझी उठकर चला गया। "इतने तेज़ ज्वर में कैसे लौट सकोगे?' . __ "जैसे आया था वैसे ही लौट भी सकंगा। ज़रूरी है काम करना । वह चीज़ दे दें तो हम अभी लौट जायें।" लयराम के चेहरे की गम्भीरता और गहरा गयी। मधु को लगा कि यह सात दिन पहले वाला लय राम नहीं है । उस दिन इसने इसी जगह गोसाईंजी का साथ देने की बात दोहरायी थी। उसके मन को थाहने के लिए मधु ने कहा : ___ "पूरा शिलडुबी अंचल आपको जानता है कि अपनी बात से आप हटते नहीं। इसीलिए मैं और भी भरोसा लेकर आया। जिस काम में हम लोग हैं, वही अब हमारी मौत है या जिन्दगी है । न तो आप अपनी जुबान को काटकर फेंक सकते हैं, न हम ही दहकते हुए अग्निकुंड में कूद जाने के बाद बाहर निकल सकते हैं । अब ऊपर से सिर पर लाठी तो न बरसायें आप !" धनपुर अनजान बना चुप बैठा तम्बाकू पी रहा था। मधु की बातों से लयराम का मुंह लटक आया। संभलने का प्रयत्न करते हुए बोला : "बात से पीछे हटने की मैं नहीं सोचता। पर सचाई यह है कि मेरे लिए दोनों दिशाएँ काल बनी खड़ी हैं। उधर रोहा थाने का सब-इन्सपेक्टर शइकीया पीछा मृत्युंजय | 55
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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