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________________ तुम कॅली दीदी के पास जाओ। याद रखना, आंधी ऊँचे-ऊंचे पेड़ों को ही झकझोरती है ।" कहता गया धनपुर : "आज इस सोते किनारे पहुँचने पर रूपनारायण की वह बात याद हो आयी है । गाँव का ही है वह । उसने कहा था, 'मरना तो है ही, तब कोई अच्छा काम करके क्यों न मरा जाये ।' तभी यह सारी बातें तय हुई थीं। मैं वहीं से कॅली दीदी के पास लौट आया। रास्ते में पड़ी कलङ नदी । भूत ऐसा सवार था कि आव देखा न ताव - सीधे पानी में उतर गया। तब भी पास यही बैग था । तब भी खड़ी तराई की थी। आज भी तैर जाऊँगा । लेकिन जल्दी करें। अब समय हथेली पर प्राण लेकर आगे बढ़ने का है ।" मधु सेमल की ओर चल पड़ा। रेशम के कीड़ों की सुगबुगाहट ने उसमें नये उत्साह का संचार भरा । धनपुर की बातें उसकी चेतना पर छायी थीं । मदन और राउता का ध्यान आते ही उसके भीतर प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी । मौत एक दिन होनी ही है : तब क्यों न मोवामरियों की तरह कर लेना है- 'मर जाऊँ तो मर जाऊँ, गुरु-दक्षिणा चुका जाऊँ ।' नदी के प्रवाह और मानव-तन की गति प्राय: समान होती है । जटाधारी संन्यासी की तरह सूखकर इसका अस्थि-चर्म ही शेष रह जाता है, तो कभी पूर्ण यौवना बाला की तरह सारी देह गदरा उठती है । कलङ भी इसी तरह कभी सूख जाती है, तो कभी बढ़कर उफनने तक लगती है। मधु का चिन्ताग्रस्त मन भी अब जैसे अचानक आयी बाढ़ से उद्वेलित हो उठा था । उसे इस समय धर्म और कर्तव्य में भेद कर पाना कठिन हो रहा था । यह द्वन्द्व कभी उसे ब्रज शर्मा की तरह रुद्र रूप में, तो कभी कोमल भाव गोसाईंजी की शान्तचित्त मुद्रा में, और कभी धनपुर की भाँति हिंस्र बना रहा था। उसे निर्णय कर पाना कठिन हो गया था कि इनमें से किसे अंगीकार करे । इतना सच था कि अब सुख का परिवारी जीवन बिताने की स्थिति तक नहीं रह गयी थी। तभी एक कामरूपी कहावत याद हो आयी : कहा लाने को पटेला, दिया लाकर धनुष । सच, कौन समझ पाता है इस संसार की माया - महिमा । अजब नहीं कि अब इसी काम में जैसे प्राण उन सबने दिये वैसे ही मुझे भी करना पहुँचते ही मधु ने गरदन ज़रा ऊँची की और सेमल । इस देह की लीला पूरी हो होगा । और इस निश्चय पर की दिशा में बढ़ गया । वहाँ मधु ने पानी की गहराई का अनुमान लगाया। समझ लिया कि पानी जितना भी हो, तैरना होगा और कपड़े भीगेंगे ही। धनपुर को भी उसने सावधान कर दिया। बीड़ी फेंककर धनपुर ने तत्क्षण धोती को ऊपर उठाकर कस लिया । हँसते हुए मधु ने कहा : "चलो !" 48 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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