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स्थान पर रहते हुए भी कई-कई रूप। एक बार तो बुढ़िया तक का स्वांग भरा उन्होंने । पुलिस उनकी परछाईं तक नहीं छू पायी।"
मधु ने उड़ते-उड़ते सब सुना था, पर विश्वास नहीं होता था। धनपुर ने उसे बताया:
"कामरूप में और भी कई घटनाएँ हुईं। उन सबके विस्तार में जाने का न तो अब समय है और न बहुत आवश्यकता ही । अभी तो रिहाबारी की ही वहाँ उस दिन एक विराट सभा हुई। कौन-कौन आये, यह तो याद नहीं । लेकिन उनमें एक महिला भी थीं । सभा चल रही थी कि पुलिस ने चारों ओर से धर घेरा। अन्य अनेक वक्ताओं के साथ उस महिला को भी गिरफ्तार कर लिया। जनता क्रोध में पागल हो उठी। बिल्कुल फुलगुड़ी जैसा दृश्य सामने था। जनता अपने नेताओं को पुलिस से छीन लेने को आगे बढ़ी। सबसे आगे कौन थे, जानते हो? दो छोटेछोटे बच्चे । निर्दय फ़ौजियों ने दोनों को भून दिया। लोग भाग खड़े हुए। जिनमें साहस था, वे बढ़े और दोनों लाशें लेकर लौट आये। जानते हो क्या हुआ फिर?"
बीड़ी का कश खींचते हुए धनपुर एक पल के लिए ठहरा । उसके बाद गर्व से छाती तानते हुए बोला : , "ऊँची आवाज़ में किसी ने कहा : 'अब मैं देखूगा क्या होता है। कलेजा फटने पर भी किसी के मुंह से बोल नहीं फूटा । लेकिन याद रखो यह अब बरों के छत्ते को छेड़ा गया है। इसका परिणाम भयंकर होगा। उसके बाद घर लौटने पर भीष्म प्रतिज्ञा की गयी : ‘यों नहीं अब बन्दूक़ उठानी होगी।' कौन था यह व्यक्ति ? रूपनारायण ! एक तरुण, कॉलेज का छात्र !"
मधु ने यह घटना पहली बार सुनी। उसका कलेजा दहल उठा । पूछा उसने :
"और वे दोनों लड़के कौन थे ? कितनी पीढ़ियों के पुण्य से घर में लड़का जनमता है और उन्हें भी इन राक्षसों ने मार डाला !"
"मदन और राउता । पहला कलिता, दूसरा कछारी था। दोनों निहत्थे थे। ऐसे अत्याचार सहन नहीं होते। उसी समय मुझे लग गया कि मैं अब जिन्दा शहीद हूँ। कुछ न कुछ मुझे भी अब करना ही है। दोनों की देह सामने पड़ी थी, कई-कई जगह से छिदी हुई। रक्त बह रहा था। दोनों की माँ छाती पीट-पीटकर धरती-आकाश एक कर रही थीं। उनके क्रन्दन ने पेड़-पेड़ और पत्ते-पत्ते तक को स्तब्ध कर दिया था । उस दिन उस हाहाकार के साक्ष्य में कलिता और कछारी सब एक हो गये थे। वहाँ खड़ा एक-एक जन यों मौन था मानो हरेक के कलेजे को गोली छेद गयी हो।"
कुछ मिनट धनपुर की वाचा खोयी रही। फिर बोला :
"रूपनारायण ने पास बुलाकर कहा : 'यो अवाक् क्यों रह गये ? पकड़े जाना चाहते हो क्या ? चलो यहाँ से : मैं धनपुर और ढेकियाजुली की ओर जाऊँगा।
मृत्युंजय | 47