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________________ हुई जंगल के ऊपर से निकल गयी । उसके स्पर्श से शहतूत की पत्तियाँ बाँसुरी की तरह बज उठीं । पर मधु का शरीर सिहर उठा । किसी तरह अपने को सँभालते हुए उसने पूछा : ___ "धनपुर भाई, खड़ी तैराई सम्भव है या नहीं ! आगे भी एक सोता पड़ेगा। कपड़े और साथ का सामान भीगने से बच सके तो अच्छा। तुम तैर सकोगे न खड़े-खड़े ?" मधु के प्रश्न ने धनपुर को अचरज में डाला । वह तो मन ही मन सोचने लगा था कि मधु कहीं इस क्रान्ति को ही विफल न किये देता हो। और शायद इसीलिए बन्दूकें जुगाड़ने में भी अनमना रहा है । यही इसकी चुप्पी का भी कारण हो सकता है। और संशय तो संशय ! धनपुर का हाथ सहज ही काठी में पड़े दाव की मंठ पर चला गया था। एकाएक मधु के प्रश्न ने उसके सारे सन्देह को छितरा दिया । दाव की मूठ छोड़कर दाहिने हाथ की उँगलियों ने बायें हाथ की बीड़ी को संभाल लिया। मधु को उत्तर देता हुआ धीरे से बोला : "नहीं भाई, अभी तक किसी तरह की तैराई भूला नहीं हूँ। कलङ कपिली, ब्रह्मपुत्र-सबकी धारों से परिचित हूँ। और खड़ी तैराई तो कॅली दीदी भी जानती हैं।" अनेक यादें धनपुर को घेर आयीं। सुनाने लगा : "तुम्हें शायद पता नहीं, मधु भाई, पच्चीस सितम्बर को नगाँव दिवस मनाया गया था। मैं तब जालाह से थोड़ी दूर रिहावारी गाँव में था। इस आयोजन में बहुत लोग आये थे । कितनों की तो बोली भी कुछ भिन्न थी । किन्तु थे फिर भी सब असमीया ही। और कामरूपी असमीया तो बड़े काम के लोग होते हैं। ब्रज शर्मा के बारे में कभी सुना है ?" मधु ने सिर हिलाया। धनपुर बताने लगा : "शर्माजी अपनी नाटक मण्डली लेकर सारा देश घूमे हैं। वैसा कुशल अभिनेता इस अंचल में दूसरा नहीं हुआ । गोसाईंजी से भी अधिक देशों का उन्होंने भ्रमण किया है; और तो और अरब आदि मुसलिम देशों में भी गये थे। विचित्र बात तो यह कि साथ के साथ देश के इस संग्राम में भी उन्होंने एक मोर्चा संभाला। एक बार तो उन्होंने लाक्षागृह दाह का नाटक किया और उसी में सरभोग के फ़ोजी हवाई अड्डे को नष्ट कर दिया। सारा काण्ड उन्होंने इतनी सतर्कता से किया कि सीटी बजाते ही एक-एक जन वहाँ से हवा हो गया और हवाई अड्डा राख का ढेर । पर यह था नाटक का एक अंक। बाद को और कई अंक घटित हुए। मिलिटरी पीछे पड़ी। कहाँ नहीं खोजा गया ब्रज शर्मा को। पर ब्रज शर्मा कहाँ मिलने वाले ! यहाँ-वहाँ भागते-छिपते भी वह नाटक ही करते रहे। कभी मियां बन गये तो कभी मज़दूर, कभी ब्राह्मण तो कभी मछुआरे । एक दिन में एक 46 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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