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________________ "यह तो बड़े खेद की बात हुई ।' "हाँ, लेकिन वे रास्ता देख आये हैं । और जगह भी निश्चित कर ली है ।" "पर काम क्यों नहीं कर सके ?" "मिलिटरी का पहरा रहता है न। सैनिकों को गश्त लगाते देख डर गये ।" " कायर ।" भिभिराम ने विरक्तिपूर्वक कहा । "तुम्हारे आदमी कैसे हैं ?" "भरोसे के और साहसी ।" "ठीक है; खा-पीकर और बातें करेंगे । भोजन लग रहा है। और जयराम सुनो, माणिक बॅरा को सोने के लिए तुम अपने घर ले जाना । धनपुर तुम्हारे साथ जायेगा, मधु । इस बीच आज ही रात धनपुर को साथ लेकर शिलडुबि जाना और बन्दूक सहित लयराम को लिवा लाना ।" "लयराम कौन है ?” भिभिराम ने पूछा I "लयराम कोच । बड़ा दुर्जय शिकारी है ।" " अच्छा रहेगा ! बन्दूक़ तो हमें चाहिए भी । " इतने में गोसाइनजी ने भोजन परस दिया । बासमती चावल की सुगन्ध ! एक बार को तो सभी को तर कर गयी । धनपुर ने पत्तल की ओर देखा : " टमाटर पड़े शीतल मछली का झोल, केले के फूल की भाजी, और शीतल मछली का ही तला हुआ पेटू । धीरज रखना भारी हो आया तो बोला : "चलिये, भोजन परोसा हुआ है, देर करने से क्या लाभ । " गोसाईंजी हलके से हँस दिये और उठकर सन्ध्या-वन्दन के लिए अन्दर चले गये । भिभिराम हाथ-मुँह धोकर आ गया । जयराम और दधि भी अपनी-अपनी पत्तलों पर आ जमे । माणिक पहले से था ही । आहिना को मुँह का पान थूककर आने में चारएक मिनट लगे । मधु भात परसने के लिए वहाँ तैनात रहा। 1 आहिना के आते-आते धनपुर की पत्तल लगभग साफ़ हो चुकी थी। उसे जोर की भूख लगी हुई थी । खाने का तरीक़ा भी अलग था: चटाचट - सपासप की आवाज होती । कच्ची मिर्च भी पूरी की पूरी चबा रहा था । कौर निगलता तो उसकी भी आवाज़ आती । और को भोजन करने में सामान्य समय जैसा लगा । लगता ही । आहिना 'हे कृष्ण, हे कृष्ण' कहता हुआ भोजन करने बैठा तो धनपुर की ओर देखने लगा । धनपुर मधु से भात और तरकारी और माँग रहा था । आहिना के मुंह से निकला : " हे कृष्ण, पिछले जनम में यही भीम रहा होगा। तभी तो हम कौर तक नहीं उठा पाये ओर इसने पूरी पत्तल साफ़ कर ली।" अन्य सब जन चुप रहे। जयराम और माणिक बॅरा भोजन करते समय मृत्युंजय / 35
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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