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" कलयुग है न भाई ।" दधि ने कहा ।
हठात् गोसाईं बोले :
"कामपुर से गोसाईजी ने पत्र में लिखा है कि तुम लोग हमारी सहायता करने आये हो । ठीक है न ?”
भिभिराम ने उत्तर दिया :
"जी हाँ । समय अब ऐसे ही कामों का है । आपने वहाँ से आये काग़ज़ - पत्रों को देख लिया है न ?”
"हाँ, देख लिया। लगता है अब इन लोगों के पास और उपाय है नहीं । अँगरेज़ों की हालत अच्छी नहीं है । जापानी दबाते हुए आगे बढ़ते आ रहे हैं । इनकी भगदड़ को देख, लगता है असम क्षेत्र इनसे खाली होते बहुत समय नहीं लगेगा । मगर हमें जापान की अधीनता भी स्वीकार नहीं करनी है । इसीलिए अपनी गुरिल्ला सेना संगठित करके स्वाधीन सरकार स्थापित करनी होगी। सुना है कि आई० एन० ए० के साथ सुभाषचन्द्र बोस भी आ गये हैं ।"
" मगर कम्युनिस्ट लोग तो उन्हें जापानी पिट्ठू बता रहे है ।" गोसाई गम्भीर हो आये :
"बिलकुल निराधार । वे क्यों किसी के पिट्ठू होंगे ? वे तो हमारे सर्वमान्य नेता हैं। अपने पत्र में गोसाईजी ने हाजारिका की बात भी लिखी है । बन्दूकें जुटा ली गयीं क्या ?"
"बारपूजिया वाली सभा में योजना बनी थी । दस-बारह हाथ में भी आ गयी हैं । लेकिन बन्दूक़ जमा करके होगा क्या ? चाहिए गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षण । हमारे पास तो सुभाष बोस जैसा नेता भी नहीं ।"
गोसाईजी जैसे भीतर-भीतर सोच रहे हों इस प्रकार बोले :
"हाँ, हमारे तो नेता क्या और स्वयंसेवक क्या कोई एक तीर तक नहीं साध सकता । फिर जैसा एकान्त स्थान इस काम के लिए चाहिए वह भी कहाँ है ! इस समय तो सिखाने वाला है न सीखने वाले । ऊँचे स्वर से 'अहिंसा बुरी चीज़ है, बुरी चीज है' चिल्लाने मात्र से तो कुछ होगा नहीं ?"
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"इसकी व्यवस्था आप मायङ में ही क्यों नहीं करते ?"
"उसी की तो सोच रहा हूँ । प्रश्न है आदमियों का और पैसे का । अच्छा ख़ैर, ये बातें धीरे-धीरे पूरी होंगी। अभी तो सामने खड़े काम की बात करूँ । सात दिन हुए हमारा एक दल गया था। बिना कुछ किये लौट आया ।"
"क्यों ?"
" लता - काटा युद्ध की कहावत सुनी है न ? समझ लो इन्होंने भी सारा समय लता काटने में ही खपा दिया ।"
भिभिराम ने उच्छ्वास लेते हुए कहा :
34 / मृत्युंजय