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बदला लूंगा। आप लोग मुझे दोष मत देना। मैं इसे मन्त्र द्वारा बांध न दूं तो-"
"अरे आप इस अजामिल की बातों पर ध्यान न दें," भिभिराम ने समझाया। आहिना कोंवर ने अधमुंदी आँखें खोली :
"लड़ के, दुर्जन की सारी दुर्जनता निकालना हम जानते हैं। यहाँ कितने आये और भेड़-बकरी बना दिये गये । कृष्ण, कृष्ण ! ऐसे-ऐसे बाण हैं हमारे पास जो थाली में सजी अग्नि की जोत की तरह पीछा करें । कृष्ण, कृष्ण !"
धनपुर ने आहिना कोंवर की ओर देखते हुए कहा :
"बहुत-बहुत ओझा देख चुका हूं, आहिना कोंवर भाई । एक थे जो सांप के डसे को ठीक करने गये, पर पानी-पानी हुए लौट आये । दूसरे अपने मन्त्र से ज्वर उतारने चले थे; पर ज्वर ने एक जो सुनी हो उनकी ! तीसरे महोदय मन्त्र द्वारा लड़कियों का सिर फिरा देते और उनसे ब्याह किया करते । यही सब है आपकी ओझाई ? और फिर विवाह में कुमन्त्र से काम लेना ! उपवास के कारण कहीं वह अचेत हो जाये तो कहा जाये कुमंत्र किया गया । जाल फैलाकर आप लोग बाघ पकड़ते हैं और भाले भोंक-भोंककर मारते हैं, मगर घोषित करेंगे कि उसे मन्त्र द्वारा मारा। सचमुच समर्थ हो तो मेरे ऊपर चलाओ मन्त्र । देखू तो-"
जयराम इस बार चूंसा ताने धनपुर की ओर लपका। गोसाईं बोले :
"क्या यह खोखले काठ की तरह तुम लोग एक-दूसरे से भिड़ रहे हो ? मैं सिर पर आग की हाँडी उठाये हुए हूँ और तुम हो कि सारे उद्देश्य को ही जैसे भूल गये। इस तरह नहीं चला करता। मेरे ही पास मन्त्र-तन्त्र की अनेक पोथियाँ पड़ी हैं। मैंने किसी को छुआ तक नहीं है । मन्त्र-तन्त्र के दिन अब गये । अब युग यन्त्रों का है। अब काम बाहुबल से करना होगा।"
माणिक बॅरा ने पूछा : "भोजन में और कितनी देर है ?"
गोसाई ने मधु की ओर देखा। उसने मछलियों को पुनः हाँडी में डालकर ऊपर ढकना रख दिया था। बोला वह :
"देर कोई नहीं है। अभी सब हो जाता है। सबके लिए यहीं प्रबन्ध करूँ ? क्यों भगतजी, ठीक न ?" |
माणिक वरा ने कहा :
"हाँ-हाँ, इसमें भला ठीक न होने की क्या बात ! गोसाईजी के यहाँ का प्रसाद और जगन्नाथजी का प्रसाद एक ही तो हैं।"
धनपुर मुसकराया :
"प्रसाद ! सीधा-पानी साथ लेकर घूमने वाले भगत और ब्राह्मण आजकल रह कहाँ गये हैं। सभी तो एक समान हो गये हैं।"
मृत्युंजय | 33.