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जयराम बोले :
"जोंगालबलहु तो बड़ा पवित्र स्थान है। वहाँ रक्त बहा है, तो अब रक्षा नहीं।"
"सो कैसे ?" भिभिराम ने जानना चाहा।
"जोंगालबलहु में ही यहाँ के राजाओं के पूर्वज थे," जयराम ने बताया : "मायड के राजा भी उनके ही वंशज रहे । जब से बानेश्वर राजा को यह खबर मिली है, उनका ख न खौल रहा है।"
धनपुर ने टिप्पणी की :
"अरे राजा कहलाने से क्या हुआ? नाम के ही तो हैं । जनतन्त्र के इस युग में राजा-वाजा सुनते भी अच्छा नहीं लगता ?"
आहिना कोंवर ने टोका :
"क्या कहते हो ? आज के छोकरे, पर बातें परशुराम की ! कृष्ण भज, कृष्ण भज !" ___ माणिक बॅरा ने कहा :
"नहीं भाई, बुरा मत मानो। आजकल के लड़के तो गुरु-गोसाई, राजाबहादुर किसी को भी नहीं गिनते !"
धनपुर ने एक और बीड़ी जला ली। सब का चाय पीना हो चुका था। कटोरियाँ उठाकर मधु पोखरे की ओर ले चला । धनपुर ने कहा :
"सच्ची बात कहना तो अधर्म नहीं-तेजवान के लिए तो कुछ भी अधर्म नहीं।"
जयराम बोला: | "यह तो कृष्ण गोसाईं हो गया : अरे कोई तन्त्र-मन्त्र कर उठेगा तो जान से लायेगा ! हाँ ! मुझे जानता नहीं है।"
धनपुर हँसा : "तुम्हारे तन्त्र मन्त्र को तो मैं ढाक के पत्ते पर रखकर चाट जाऊँगा।"
जयराम ने क्रोध में आकर पास रखा पनबट्टा उठाकर धनपुर के सिर पर मारा । धनपुर ने सिर एक ओर कर लिया। पनबट्टा जाकर मछलीवाली हाँडी पर गिरा । उसका ढकना लुढ़क गया और मछलियाँ उछलकर बाहर जा पड़ीं और छटपटाने लगीं।
धनपुर के इस व्यवहार पर सभी को बुरा लगा। मन्त्र-तन्त्र के माननेवालों को उसकी बात बिच्छू के डंक की तरह लगी। सब एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे; लेकिन धनपुर निश्चिन्त बैठा बीड़ी पीता रहा।
जयराम मिसमिसाता हुआ बोला : "पाखण्डी कहीं का! मायङ में आकर मन्त्र विद्या का अपमान ! मैं इसका
32 / मृत्युंजय