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मधु मछली धोकर लाया और रसोईघर की चौखट के पास रख दीं। मांगुर को हाँड़ी में जीवित ही रख छोड़ा था। पानी कम होने के कारण खरभर-खरभर कर रही थीं।
चाय पीते-पीते आहिना मुसकराकर बोला :
"धनपुर सो कामपुर से यहाँ ऐसे आये जैसे दिति राजा आये । लेकिन हमारे यहाँ भी बानेश्वर राजा हैं। मायङ के राजा ! यहाँ के रीति-रिवाज सीखो भाई, नंगे पैरों नाचो मत !"
गोसाईंजी ने इस बार धनपुर की ओर देखते हुए कहा : "रेल की पटरी तुमने पहले कभी उखाड़ी है ?" "जी।" "कहाँ ?" "कामपुर में।" "औज़ार हैं ?" "जी, रेलवे के एक गैंगमैन से माँग लाया हूँ।" "दे दिये उसने ?"
"जी हाँ । कामपुर, बढ़मपुर और रोहा में बहुत-बहुत अत्याचार हुए हैं। जनता इसलिए क्षुब्ध हो उठी है। इधर क्या स्थिति है ?"
गोसाईंजी ने बताया :
"यह स्थान तो भीतरी अंचल जैसा है । इसलिए ज्यादा अत्याचार यहाँ नहीं हुए। लेकिन पास के बिलिमारा गाँव में मिलिटरी ने एक बुढ़िया को बूटों से कुचल-कुचलकर अधमरा कर दिया। बात कुछ नहीं थी। काजलीमुख में इनका एक कैम्प है। वे लोग बुढ़िया के खेत से धान काटकर ले गये । सुनते ही बुढिया झाड़ लिए हुए उन्हें खदेड़ने दौड़ी। इसी पर वे लोग पगला उठे और उस बेचारी का हाल बेहाल कर दिया। चार दिन तक ख न की उलटियाँ करती रही । अब कुछ ठीक है।"
भिभिराम के मुंह से निकला : "इन दुष्टों में दया-धर्म, आवार-विचार तो नाम को नहीं।" गोसाईंजी बोले :
"साम्राज्यवादी सेना होती ही ऐसी है। पैसे के लिए काम करती है न ! सेनापति जो कहे वही उनके लिए वेद-वाक्य । इनका यदि मन पलट जाये तो एक दिन में ही रावण की तरह अँगरेज़ों का भी पतन हो जाये । अच्छा, तिलक डेका ने क्या सिंगा फूंकने में प्राण दिए ?"
धनपुर ने बताया : "जी हाँ । उसके बाद गुणाभि बरदल भी मारा गया जोंगालबलह गढ़ में।"
मृत्युंजय / 31