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________________ सचमुच विमुख हो चुके हैं। हमें अपना आत्मबल जाग्रत करके उन्हें लौटा लाना होगा ।" माणिक बॅरा अलाव के पास आ बैठा । खखारकर गला साफ़ करते हुए गोसाईजी को सम्बोधित किया : "विश्वासे मिलय हरि, तर्फे बहु-बहु दूर ! आपके सत्र का यह शस्य श्यामल अनुपम है प्रभु ! भगवान का यहाँ निश्चय वास है । हमें केवल उन्हें निद्रा से जगाना होगा ।" तभी सूती मेखला - चादर में लिपटी और सिर पर आँचल सँभाले एक लघुकाय गौरवपूर्ण महिला आयीं और माणिक बॅरा के पास चाय की दो कटोरियाँ रखकर भीतर चली गयीं । दधि ने उस स्थान को पहले ही हाथ से झाड़कर साफ़ कर दिया था। फिर वे एक कटोरी चाय और लायीं । कटोरी धनपुर ने लेने के लिए हाथ बढ़ाया; मगर गोसाइनजी ने कटोरी उसे न देकर साफ़ किए हुए स्थान पर ही रखी। धनपुर ने उनकी कलाइयों में पड़ी चूड़ियों की खनक सुनी और देखा झलकभर ताजे-ताजे खिले गुलाबों जैसा मुखड़ा । गोसाइनजी अवस्था में गोसाईजी से बहुत कम लगीं : सामान्यतः ब्राह्मण बालिकाओं का विवाह कम वय में ही कर दिया जाता है । दधि ने धनपुर को समझाया : "भइया, गोसाइनजी के हाथ से चाय नहीं लेनी चाहिए । कटोरी छू जाती और उन्हें अभी फिर स्नान करना पड़ता । धनपुर खिलखिला पड़ा : "लगता है प्रभु, भगवान की बातों का उल्लंघन हो रहा है ।" गोसाइन ने भीतर से पूछा : "चाय और चाहिए दधि ?" दधि ने आहिना की तरफ़ देखा । धीरे से बोला आहिना : "एक कटोरी और मिलने से अच्छा तो रहता ।" "और तुम्हें जयराम ?” "नहीं ।" गोसाइन फिर निर्वाक् प्रतिमा की तरह अन्दर चली गयीं। उनके मेखले की खसमस बन्द होने पर भिभिराम ने धनपुर की ओर कड़ी आँखों से देखते हुए कहा : "दस भले जन के बीच उठने-बैठने की रीति भी सीखो धनपुर । इतना भी नहीं सीखोगे तो देश का काम कैसे करोगे ?" धनपुर ने होंठों में दबी बीड़ी निकालकर फेंक दी और चाय चुसकने लगा । आधएक मिनट बाद आहिना की चाय आते ही वह भी पीने लगा । 30 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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