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________________ "यह बामाचारी मलेच्छ कहाँ से आ निकला ? कृष्ण ! कृष्ण !!" भिभिराम कहने लगा : "रास्ते-भर भी माणिक भगत के साथ इसी तरह तर्क करता आया है । बात यह है कि बारपूजिया की सुभद्रा पर जो सब बीता, वह घटना आपने सुनी ही होगी। मिलिटरी ने उस भोली कन्या पर अमानुषिक अत्याचार किया। इसका मर्म उससे चोट खा गया है।" . तभी दधि बरदल गा उठा : विष्णु वैष्णवक करै धिक्कार । काटिबे आण्टिले जिह्वाक तार ।। धनपुर की नज़र दधि की ओर घूमी । अवस्था पचीस के लगभग होगी। तन पर लम्बा-सा कुरता और घुटनों तक धोती । स्थानीय प्राइमरी स्कूल में मास्टर था। थोड़ा पूजा-पाठ भी कर लिया करता था । धनपुर ने उनसे कहा : "तुम दिखा सकते हो भगवान कहाँ हैं ? दिखा सको तो विश्वास कर लूंगा। तुम्हारे यहाँ तो मन्त्रों के ज्ञाता लोग भी हैं।" जयराम ने उत्तर दिया : "प्रमाण चाहो तो दिखला सकता हूँ।" "तुम ओझा हो क्या ?" "थोड़ा-बहुत तो तन्त्र-मन्त्र जानता ही हूँ।" धनपुर ने उसकी ओर गौर से देखा : "अच्छा तब अपने मन्त्र-बल से ही उन मिलिटरी वालों को कुछ करो। हथियारों से तो उनसे पार पाना कठिन है।" धनपुर ने पॉकिट से बीड़ी निकाली । बड़ों के आगे एक तरुण को बीड़ी पीने की हिम्मत करते देख आहिना कोंवर भड़क उठा : "इसी को कहते हैं अल्पविद्या भयंकरी ! हे कृष्ण, दो अक्षर अंग्रेजी-बंगला क्या पढ़ गये कि सिर आसमान पर चढ़ गया। सिद्ध-मुनिगण जिसके लिए आजीवन तप किये उसे ही यह आज के मूढ़मति पाँवों आगे की मिट्टी में पाना चाहते है। कृष्ण-कृष्ण ! गोरों के ये स्कूल और कचहरी-दफ्तर क्या आये : मलेच्छों की भरमार हो गयी। इन्हें निकाले बिना नहीं चलेगा । हे कृष्ण, हे कृष्ण ! यह नीच कहता है भगवान हैं ही नहीं। मैं तो तुम्हें हाथोंहाथ दिखा सकता हूँ। अरे, प्रभु गोसाईं के आसन के पासवाले खूटे में भी भगवान हैं।" धनपुर बीड़ी का धुआँ हाथ में छितराते हुए ठठा पड़ा । सर्वथा निर्भय, सर्वथा सहज । गोसाईंजी को छोड़ और सबकी कोप-दृष्टि उसी पर । भिभिराम हतबुद्धिसा सोचता हुआ। इतने में भीगा गमछा लपेटे एक पद गुनगुनाते हुए माणिक बरा ने प्रवेश 28 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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