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________________ यहां आनेवालों को भेड़-बकरी बना दिया जाता है। सचमुच ऐसा है क्या ?" उत्तर दिया जयराम मेधि ने : __ "सच और झूठ का प्रमाण तो मैं हाथोंहाथ दे सकता था। किन्तु जब से प्रभु ने काँग्रेस के काम में लगा दिया है, तब से वह सब छोड़ दिया। नहीं तो जिस पीढ़े पर बैठे हो, उसी पर चिपकाकर छोड़ देता, समझे? मन्त्र तो कितने-कितने हैं ! कुमन्त्र भी, सुमन्त्र भी !" "तात्पर्य कि मायड की महिमा अब नहीं रही !" । तभी माणिक बॅरा को अपनी गठरी में से गमछा निकालते देख धनपुर ने द्वार से लगे खड़े मधु केवट से कहा : "सुनो भई, भगत जी नहायेंगे। तुम एक दीपक लेकर इन्हें पोखर में स्नान करा लाओ । ठण्ड बढ़ चली है : देर करना ठीक नहीं।" सब कोई माणिक भगत की ओर देखने लगे। भगत अपना कुरता आदि उतार चुके थे। उनकी गठीली मांसल देह सबकी आँखों के सामने थी। केशों का जूड़ा तो प्रभु के जूड़े से भी बड़ा था। जयराम पूछ उठे : "आप किस सत्र के भगत हैं ?" बड़े प्रेम भाव से बताया माणिक ने : "कुरूवावाही का।" "अच्छा ! चारों सत्रों में मुख्य सत्र के । मैं कई बार वहाँ रास देखने गया हूँ। किन्तु वहाँ धन-सम्पत्ति अपेक्षया कम है । अवश्य, मान-प्रतिष्ठा यथेष्ट है। शिष्य भी बहुत हैं।" "आप किस सत्र के हैं ?" माणिक बॅरा ने जानना चाहा। "मैं यहीं का है।" "इसी सत्र के ? चैतन्य पन्थी हैं क्या आप लोग ?" "जी हाँ।" इतने में मधु केवट ने पुकारा : "आइए, स्नान कर लीजिए।" कन्धे पर गमछा रखे माणिक भगत पीछे पोखर की ओर चले गये। भिभिराम जिज्ञासु हुआ : "तब आप लोग तो राधा को मानते होंगे ?" "हाँ ।" "और 'कीर्तन घोषा' और 'दशम' को ?" :"इन्हें क्यों नहीं मानंगा ? सव में ही तो 'भागवत' की कथाएँ हैं। भेद जो कुछ है, थोड़ा-बहुत भक्ति के रूप और प्रकार में ।" जयराम ने उत्तर दिया और 26 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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