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________________ " पास वाले चर में क्या हो रहा है, इसका पता है न ?” "हाँ, विवाह ।" रूपनारायण ने कहा । "यह केवल विवाह नहीं है, यह आरती का विवाह है।" अनुपमा ने थोड़े उच्च स्वर में ही उत्तर दिया । तभी शकीया वकील के घर से ढोलक की आवाज़ सुनाई पड़ी। रूपनारायण का मन थोड़ा चंचल हो उठा। ढोलक की आवाज़ मानो उसका उपहास कर रही हो । उसने अनुपमा की ओर देखा जैसे वह अब भी उसी वाक्य को दुहरा रही थी, रूपनारायण ने अपना सिर नीचा कर लिया। अनुपमा ने टोका : " तुमने आरती की ख़बर तक नहीं ली । मन में दुःख नहीं होता है क्या ?" "अनुपमा ! यह बात न पूछना ही अच्छा है । शायद मैं उत्तर नहीं दे सकूँ।” "तब रहने दो ।" अनुपमा क्षण-भर को चुप हो गयी । फिर धीरे से बोली : "उधर चलो । शइकीया वकील ने तुम्हें बुलाया है। पिछवाड़े से ही भेजने के लिए कहा है। चलो उठो ।" और रूपनारायण उसके यहाँ जाने के लिए उठ खड़ा हुआ । 238 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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