________________
लौटे। और जब लौटे तो ज्वर से तपते हुए । आते ही गृहिणी आइकण से बोले, 'जान पड़ता है टाइफाइड हुआ है ।' टाइफ़ाइड ही निकला भी । समझते हो न भगत भइया - टाइफाइड !"
माणिक बॅरा सिर हिलाता हुआ बोला :
"जानता हूँ भाई; मेरे पिता इसी रोग में तो गये। ज्वर आकर जाने को ही नहीं करता । कम हो आयेगा, फिर बढ़ उठेगा । बस जैसे चन्द्रमा की कला : घटती जायेगी, फिर बढ़ने लगेगी।"
शायद धनपुर की उँगली को बीड़ी की छूछ का चहका लगा। उसे फेंककर उसने दूसरी निकाली। होंठों के बीच लेते हुए बोला :
"डॉक्टर जीजा के विचार से उस सी० आई० डी इन्स्पेक्टर का मारा जाना ही अच्छा हुआ : उनका कहना था कि शइकीया तो अब पागल कुत्ते की तरह बौखला उठा है। बारपूजिया के लोगों ने उस इन्स्पेक्टर की लाश तक को कलङ में बहा दिया । "
हठात
माणिक बॅरा ने पूछा :
" पर किसने किया होगा यह दुःसाहस ? "
"पता नहीं; शायद मृत्यु-वाहिनी के नायक ने स्वयं ।"
तभी उँगली से एक ओर संकेत करते हुए भिभिराम ने कहा :
"इसी मोड़ के उस तरफ़ है सत्र ।"
इतने में तीनों ने देखा कि तीसेक साल का एक हट्टा-कट्टा भेंगा मछुआरा
कन्धे पर जाल सँभाले सामने के पोखर से निकलकर आया । इन पर आँख पड़ते ही गम्भीर होता हुआ बोला :
"कहाँ के हैं आप लोग ? इधर कहाँ जा रहे हैं ?"
उत्तर भिभिराम ने दिया :
"कामपुर के हैं; इधर गोसाईंजी के यहाँ जाना है !"
कौन गोसाईंजी ?"
"यही दैपारा सत्र के महत् गोसाईं ।”
"मगर उनके तो कामपुर में कोई शिष्य हैं नहीं ।" मछुआरे के स्वर में सन्देह का भाव झाँक आया ।
"नये शिष्य हैं हम लोग ।" भिभिराम ने आश्वस्त किया ।
मछुआरे की खँचिया में खरभराहट सी हुई। पूछा भिभिराम ने :
"कौन-कौन मछली पकड़ीं भाई ?”
"दो खरिया हैं, चार माँगुर । मगर आप लोग यहाँ कहाँ आ गये ? यह तो जाग्रत स्थान है | भगवान महादेव का । ओझाओं का गढ़ है। मिथ्या बोलने वालों का तो मरण ही समझो ।”
20 / मृत्युंजय